पथ के साथी

Tuesday, October 30, 2012

हमने बाँचा हूक को


दोहे
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
बेकल था तेरा हिया, मैं हो उठा अधीर ।
मैं रोया इस पार था,तुम्हें उठी जो पीर । ।
2
तुम जागे थे रात भर ,दूर कहीं परदेस ।
हम सपनों में खोजते , धरे जोगिया भेस । ।
3
द्वार तुम्हारा तो मिला ,तुम थे गुमसुम मौन ।
हमने बाँचा हूक को , और बाँचता कौन । ।
4
साँस रही परदेस में , जुड़ी कहीं पर डोर ।
प्रेम नाम जिसको दिया , उसका मिला न छोर । ।
5
किया आचमन मन्त्र पढ़,सुबह-शाम जो नीर ।
पोर पोर नम कर गई , वो थी तेरी पीर । ।
6
ढूँढ़ा जिसको उम्र भर  , उसको कहते प्रीत ।
धरती -सागर  खोज के ,मिले तुम्हीं बस मीत ।
 7
अपने ही घर में लगा , हम हैं पाहुन आज ।
भोर हुई तो चल पड़े ,अपने-अपने काज  ।
8
मन्दिर जाकर क्या करूँ , मुझको मिला न चैन ।
पण्डित जो रहता वहाँ , वह भी है बेचैन । ।
9
दो पल में माटी हुआ ,जीवन भर का मेल ।
हमसे खेले यार सब , सदा कपट का खेल । ।