पथ के साथी

Wednesday, April 17, 2019

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रमेश राज
1-कुण्डलिया
जनता युग-युग से रही भारत माँ का रूप 
इसके हिस्से में मगर भूख गरीबी धूप
भूख गरीबी धूप, अदालत में फटकारें 
सत्ता-शासन रोज, इसे पल-पल दुत्कारें
बहरी हर सरकार, चलो कानों को खोलें 
जनता की जय आज, आइये हम सब बोलें
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2-दुर्मिल सवैया छंद में तेवरी
[ आठ सगण=112  के क्रम में 24 वर्ण ]
इस कोमल से मन को मिलता, अपमान कभी, विषपान कभी
सुख से न रही पहचान कभी, मुख पै न सजी मुसकान कभी। 

मन को दुःख के अनुप्रास मिले, सच को जग में उपहास मिले
रचती मुरली मधुतान कभी, हम भी बनते रसखान कभी।

हमको कटु से कटु भाव मिले, अलगाव मिले, नित घाव मिले
मधुमास-भरे, अति हास-भरे, हम पा न सके मधुगान कभी।

अभिवादन बीच सियासत है, दिखने-भर को बस चाहत है
जग बादल-सा छल में झलका, गरजा न कभी-बरसा न कभी।


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