रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
वश जो चले
चाहेगा कौन जीना
ज़हर पीना
2
जीवन-वन
भटकता ही रहा
चोटिल मन
3
सारे वसन्त
ले गया घर-द्वार
मिली दुत्कार
4
जाने नहीं ये
पाषाण का नगर
घाव हैं कहाँ?
5
अभागे हम
झुलसने पर भी
न भागे हम
6
मौत ने नहीं
अपनों ने सदा ही
मारा मुझको
7
मारा मुझको
7
अमृत-घट
जो पिलाने थे आए
सभी लौटाए
8
ज़ुबान खोलें
जमा जितना विष
मन में घोलें
9
जाएँगे हम
ढूँढ़ो जो रोकर भी
लौटेंगे नहीं
10
ढूँढ़ा था घर
मिला था काँटों का
हमें बिस्तर
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