पथ के साथी

Thursday, May 30, 2013

ओ पलाश !

पुष्पा मेहरा
सुनो सुनो ओ! पलाश
प्रसन्न देख तुम को बन में
जागी इच्छा मेरे भी मन में
थोड़ा- सा रंग तुम्हारा निखरा
तुम से ही ले लूँ मैं उधार  ।

भर लूँ अपने ह्र्दय के छोर में
भीगूँ जल में,बाँटूँ जग में
परदु:ख में जी भर  मैँ डूबूँ
परसुख को जी भर जी लूँ मैँ

नव शिशु की किलकारी में
ओ! पलाश निश्छल- भाव-रंग घोलूँ
भोले बचपन की  खुशियों में-
 नि:स्वार्थ भाव -रश्मि भर दूँ ।

-0-