पथ के साथी

Showing posts with label रश्मि विभा त्रिपाठी. Show all posts
Showing posts with label रश्मि विभा त्रिपाठी. Show all posts

Wednesday, May 21, 2025

1464-तुम मिल गए

 

1-चुम्बन का वरदान/ रश्मि विभा त्रिपाठी

 


पलकों के झुरमुट से
एकाकीपन के सूरज की किरन
कभी चमकी
कभी बीते पल की
हवा चली
कभी न सुहाई
कभी लगी भली
दर्द का बादल
छा गया अगले पल
आँखों के आसमान से
आँसू की एक बूँद
कभी
गालों की छत पे
गिरी टप से
ज्यों चुम्बन का वरदान मिला
प्रेम के कठिन तप से
उस बूँद को
पीता रहा
जीता रहा मन का चातक
हुई धक-धक
आज भी
सोच के सहन में लगे
देह के पेड़ की टहनी पर
बहुत देर से बैठा
यादों का पंछी
उड़ गया
काँप गई
रोम- रोम की पत्ती

धमनी में
उठा है ज्वार- भाटा
बेबसी की बाढ़ में
डूबती
साँस छटपटाई है
छाती की धरती डोली है
हर मौसम में
तुम्हारी अनुभूति की कोयलिया
आत्मा की अमराई में
बोली है।

-0-

2-बाहों के बिस्तर पर — रश्मि विभा त्रिपाठी

 

थकन से चूर
तुम्हारी बाहों के
बिस्तर पर
जिस दिन सोई थी
कुछ पल के लिए
तुम्हारे प्यार की पाकीज़गी की
मलमली चादर ओढ़के
उस पल से लेकर
अब तक
तुम्हारे ख़्वाब 
जो देखे हैं मैंने
ओ मेरे अहबाब
इन्हीं से मेरी ज़िन्दगी में 
बरकत है
कोई फर्क नहीं
कि अब उम्र भर
न रहे पास
नींद का असबाब
तुम मिल गए
मुझको मिल गया शबाब

-0-

3-क्षणिकारश्मि विभा त्रिपाठी

1
ये मुहब्बत नहीं
तो फ़िर आप ही कहिए
इसे क्या मानते हैं,
हम रू- ब- रू कभी न हुए
मगर सदियों से
इक दूसरे को जानते हैं!
2
आज खुशियों पे
बंदिश नहीं है
क्योंकि
अब दुख से
मेरी रंजिश नहीं है।
3
मेरी ज़िन्दगी का दीया
बुझाने का है जमाने का पेशा,
नहीं मालूम मैं रश्मि हूँ,
सूरज मेरे पीछे चलता है हमेशा।
4
मायूसी की धूप
या दर्द की बरसात में
दिन- रात मैं
रखती हूँ अपने पास
उम्मीद का छाता
आँखें भीगती नहीं,
मन जल नहीं पाता।
5
ज़िन्दगी के खेत में
पिछली बार बो दिए थे
उम्मीद के बीज
फसल काटकर
साफ कर
छानकर
फटककर
भर दिया कुठला
इस बरस की रोटी का
हल हो गया मसला।
6
होठों पे खिल उठीं
कलियाँ तबस्सुम की नई,
तुम आए
तो ज़िंदगी के सहरा में
बहार आ गई!
7
तेरी याद का सूरज
दिल के फ़लक से
कभी भी ढला नहीं
कहने को दूर हैं हम,
हमारे दरमियान
कोई फासला नहीं!
-0-

Thursday, February 13, 2025

1449-तीन कविताएँ

 

1-मखमली अहसास— रश्मि विभा त्रिपाठी

तुम्हारे होंठ
गुलाब की पंखुड़ी हैं
ये पंखुड़ियाँ
हिलती हैं जब
साफगोई की हवा के तिरने से
जज़्बात की शबनम के गिरने से
तब
ख़ुशबू में लिपटे
तुम्हारे लफ़्ज़
महका देते हैं
हर बार मुझे

रेशम- सी हैं
तुम्हारी हथेलियाँ
जो सोखती हैं
मेरी आँखों की नमी
तुमने जब मेरा सर सहलाया था
तो तुम्हारी उँगलियों के
पोरों के निशान
पड़ गए
मेरे भीतर
उनसे मुझे पता चला
कि दुनिया की सबसे कोमल शय
तुम्हारी रूह है

तुम्हारे सीने से लगके
मुझे महसूस हुआ
कि तुमने रख दिए
मेरे गालों पे नर्म फाहे
आज जी चाहे
बता दूँ तुम्हें
मैंने तभी जाना—
कपास
प्रेमी के हृदय में सबसे पहले उगा होगा
इसलिए तो तुम्हारी तरह दिव्य है,
पवित्र है,
निष्कलंक है
और रूह को सुकून देने वाला है
तभी तो ईश्वर ने भी उसे ढाला है
मंदिर की जोत में,
तुम‐ सा वह
फरिश्ता है
हर घाव जो रिसता है
उसपे मरहम मले
दे दर्द से मुक्ति
बिछ जाता है
थकान के तले
जब तुमने बाहें फैलाई थीं
मेरे लिए
और मैं आकर
तुमसे लिपटी थी
तो लगा था
तुमने बिछा दिया है
मेरे लिए
एक घास का गलीचा हरा
मैं हिरनी- सी कुलाचें मारने लगी थी

दुनिया ने छील दिया है मुझे
मेरी खुरदरी ज़िन्दगी
इस हाल में
चाहती है पनाह
तुम्हारी बाहों के बुग्याल में
ताकि उतर आए मुझमें
तुम्हारा मखमली अहसास
जो हर टीस भुला दे
चैन की नींद सुला दे,
वक्त के बिस्तर पर
मैं जब लेटूँ
अतीत की चादर ओढ़कर।
—0— 



2-गौर से देखा होता कभी— रश्मि विभा त्रिपाठी

 

गौर से देखा होता कभी 

मेरी आँखें— 

सर्द स्याह रात के बाद 

निकली

भोर की पहली किरण 

पलकें उठतीं 

तो मिलती गुनगुनी- सी धूप 

ठिठुरता तन गरमाता

 

आँखों में सपनों के बादल

घुमड़ते

अवसाद का ताप 

मिट्टी में समाता

 

आँखों में 

नेह का सावन 

बरसता तेरी हथेली पर

हरियाली की 

फसल उगाता

 

तेरे होठों पर भी था 

पतझड़ के बाद का

बसंत 

मदमाता

लफ़्ज़ों के खिलते फूल 

तो रिश्ते का ठूँठ 

लहलहाता

 

तूने लगाया होता

सोच का रंग प्यारा

मेरा मन तो 

कबसे था हुरियारा

 

अहसास की पुरवाई 

तुझे छू पाती

खोली होती अगर 

तूने अपनी आत्मा की खिड़की कभी 

तूने बंद रखे खिड़की- दरवाज़े 

महसूस ही नहीं किया कभी

जो कर पाता

तो जानता 

कि

ज़िन्दगी खुद एक ख़ुशनुमा मौसम है 

तू खोया रहा 

वक्त के मौसम में

सोचा कि लौटेगा एक दिन तू 

उसके रंग में रँगकर

मगर

सीखा भी तूने तो क्या सीखा 

वक्त के मौसम से—

मौसम की तरह बदल जाना

जबकि वह बदलना था ही नहीं, नहीं दीखा?

वह था—

एक के आने पर दूसरे का उसे 

पूरी कायनात सौंप देना 

और खुद को 

उसके लिए गुमनाम कर देना 

यही दोहराता आया है क्रम

एक दूसरे के लिए हर बार हर मौसम।

मौसमों का बदलना प्यार है—

सच्चा प्यार!

अफ़सोस 

मौसम जानता है

प्यार क्या है

इंसान को नहीं पता 

इतना जहीन होकर भी।

—0—

3-खिलता गुलाब हो तुम— रश्मि विभा त्रिपाठी

 

तुम्हारे नेह की नाज़ुक पंखुरियाँ
झर रही हैं
मन की तपती धरती पर
ज़िन्दगी के मौसम में बहार आ गई है

इन दिनों
मेरे ज़ख्मी पाँव पड़ते हैं
जहाँ- जहाँ
चूम लेता है हौले से
मेरे दर्द को
तुम्हारा मखमली अहसास—
मेरी आत्मा में घोल दिया है तुमने
अपना जो यह इत्र

क्या बताऊँ कि है कितना पवित्र!!
माथे पर तुमने जो रखा था
वह बोसा गवाह है
कि हर शिकन को मिटाता
तुम्हारा स्पर्श
पूजा का फूल है
हर मुराद फलने लगी है
नई उमंग नजर में पलने लगी है
आँखों में है तुम्हारा अर्क
महक रही हूँ मैं
वक्त का झोंका
जब भी आता है
और महक जाती हूँ मैं
नींद के झोंके में भी
अब मुझे यही महसूस होता है—
ख़ुशबू का ख़्वाब हो तुम
दुनिया के जंगल में
काँटों के बीच
खिलता गुलाब हो तुम।

—0—

Wednesday, February 5, 2025

1448-बिन माँ का बच्चा

 

- रश्मि विभा त्रिपाठी



बिन माँ का बच्चा
अपनी माँ समान मौसी से
अब बात नहीं कर पाता
उस पर लग गया है
सख़्त पहरा
रोता है, कराहता है
जानना चाहता है
बाप, चाचा, दादी की बेरहमी का
राज गहरा

जब सुनता है
कि बाप को चाहिए हिस्सा
माँ की जायदाद में से
खुश होता है
अपने मन के मरुथल में
इच्छाओं के बीज बोता है
इच्छाएँ जो कभी फली- फूली नहीं

सोचता है-
पापा इतने भी बुरे नहीं
मौसी से बात करानी बंद की है
मेरे ही भले के लिए

फिर गिनने लगता है बच्चा
अपनी नन्ही उँगलियों पर कुछ
मुस्कराते हुए

बच्चा खरीदेगा
खिलौने
जिसके लिए बाप ने कभी
पैसे नहीं दिए

वो खरीदेगा अपने सपनों का कद
सपने— जो रह गए बौने
जिन्हें पालने- पोसने के लिए
बाप ने
उसे कभी नहीं दी
भरपूर नींद

वो खरीदेगा
घर का एक कोना
जो नई माँ के आने पर
उसे कभी नहीं मिला 

स्थायी तौर पर

वो खरीदेगा सुराग
माँ की उन चीजों का
जो बाप ने बेकार समझकर फेंक दी थीं
जो माँ ने कभी
अपने हाथों से छुई थीं
जिनमें माँ का स्पर्श था
वो तलाशेगा उन चीजों में
अपनी माँ के होने का अहसास

वो खरीद सकेगा थपकियाँ
जो माँ की याद में हुड़कते हुए
बाप ने नहीं दीं कभी
उसे चुप कराने के लिए

वो खरीद सकेगा हर करवट पर
तखत के दूसरी ओर के
खाली पड़े रहे हिस्से में
पिता की जगह,
जहाँ बाप कभी नहीं लेटा
उसे उसकी माँ से
हमेशा से बिछड़ने के गम से
उबारने के लिए

वो खरीद सकेगा
रात होते ही
उसे बाहर अकेला पड़ा छोड़ गए
कमरे में जाते
बाप के बिस्तर पर
दूसरी माँ के और बाप के बीच बिछा वही बिछौना
जैसे उसकी माँ बिछाती रही
मरते दम तक
उसके लिए

वो खरीद सकेगा
अपना हर काम
अपने हाथों से करते हुए
हाथों में पड़े छालों के फूटने पर हुए दर्द की दवा
जो बाप ने कभी नहीं दी उसे

वो खरीद सकेगा अपनी बेगुनाही
जो सौतेली माँ ने अपनी हर गलती उस पर डाली थी
तब खुद को बेकसूर साबित करने को नहीं थी उसके पास

बच्चा खरीद सकेगा अपना हक
जो घर में मौजूद
उसकी माँ की हर चीज पर
सौतेली माँ ने जमा रखा है
सिवाय ममता को छोड़कर

 

खरीद सकेगा

अपना भी हिस्सा 

माँ का सबकुछ 

जो उसके हिस्से में आना था

अब दूसरी माँ के हिस्से में आ गया है

वो खरीद सकेगा
बाप नाम के आदमी के भीतर

रखने को एक बाप का दिल
जो उसने पति बनते ही

सुहागरात पर निकालकर रख दिया था
अपनी दूसरी दुल्हन के कदमों में
बच्चे से फेर लिया था मुँह
बच्चा घुटता रहा सदमों में

बच्चा खरीद सकेगा
थोड़ी शर्म भी बाप के लिए
जो माँ की बरसी से पहले
सेहरा सजाने पर उसे नहीं आई थी

वो खरीद सकेगा

अपनी माँ के लिए रत्ती भर इज्जत
जो उसे जीते जी
और मरने के बाद नहीं मिली कभी

बच्चा खरीदेगा
नानी के घर जाने के लिए
गर्मी की छुट्टियों के वही दिन
माँ के मरने के बाद
बाप आज तक कभी
ननिहाल की चौखट पर नहीं ले गया उसे
कि वह एक घण्टा भी बिताता
नाना- नानी का लाड़ पाता

बच्चा चाहता है
कि हिस्से में मिले
उन पैसों से बाप खरीदकर

 ले आएगा भगवान से उसके लिए
उससे एक बार मिलने को तरसते

अस्पताल के बेड पर लेटे 

नाना के लिए 

कुछ साँसें
जो उससे बिना मिले चले गए
ताकि वे फिर जी उठें
और वो उनसे मिल सके

बच्चा खरीद सकेगा
बूढ़ी नानी की बाहों में वही दम
फिर से झूला झुलाने को
कंत- कतैंया करने को
पाँव के जोड़ों की वही फुर्ती
पकड़म- पकड़ाई खेलने के लिए

बच्चा खरीद सकेगा
मौसी की आँखों की चमक
जो उससे मिलने के लिए रो- रोकर
गँवा दी है उसने

बच्चा खरीद सकेगा वो बचपन
जिसे बाप ने बीतने दिया
बगैर बेफ़िक्री, खेल, मौज- मस्ती के
हर वक्त के रोने के साथ

लेकिन सबसे पहले
खरीदना चाहता है बच्चा
थोड़ा– सा अमृत अपने लिए
माँ को जहर देकर मारने वाले

बाप की वजह से

फिलहाल तो बच्चा 

खरीदना चाहता है आजादी
जो माँ के हत्यारे के साथ रहने के डर से

उसे आजाद कराएगी।
—0—

Tuesday, December 3, 2024

1441

 

माहिया- रश्मि विभा त्रिपाठी



1
खोलो मोखे मन के
धूप मुहब्बत की
आने दो छन- छनके।
2
दरवाज़ा खड़का है
शायद वो आए
मेरा दिल धड़का है।
3
होठों पे आह नहीं
तुम जब अपने हो
कोई परवाह नहीं।
4
तुमको जिस पल पाया
हर इक मुश्किल का
मैंने तो हल पाया।
5
हर रोज सँवरने दो
मन में चाहत का
अहसास न मरने दो।
6
तेरे ही पास मुझे
हरदम रखता है
तेरा अहसास मुझे।
7
बोले ये दिल धक से
मुझको अपना तुम
कहते हो जब हक़ से।
8
जीवन को सींच रही
मीत मुहब्बत ये
जो अपने बीच रही।
9
वो पास नहीं होता
मुझको जीने का
आभास नहीं होता।
10
तुम मुझको गैरों में
हरगिज़ ना गिनना
पड़ती हूँ पैरों में।

-0-

Thursday, November 21, 2024

1440

1-दूर –कहीं दूर/ शशि पाधा

 


अँधेरे में टटोलती हूँ

बाट जोहती आँखें

मुट्ठी में दबाए

शगुन के रुपये

सिर पर धरे हाथों का

कोमल अहसास

सुबह के भजन

संध्या की

आरतियाँ

लोकगीतों की

मीठी धुन

छत पर रखी

सुराही

दरी और चादर का

बिछौना

इमली, अम्बियाँ

चूर्ण की गोलियाँ

खो-खो, कीकली

रिब्बन परांदे

गुड़ियाँ –पटोले

फिर से टटोलती हूँ

निर्मल स्फटिक- सा

अपनापन

कुछ हाथ नहीं आता

वक्त निगल गया

या उनके साथ सब चला गया

जो चले गए

दूर--- कहीं दूर

किसी अनजान

देश में

और  फिर

कभी न लौटे।

-0-

2-कुछ शब्द बोए थे - रश्मि विभा त्रिपाठी

 


जैसे अभाव के अँधेरे में

हो सविता!

खेतों में किसान ने

जब बीज बोए

तैयार करने को फसल

दिया था जब खाद- पानी

तो गेहूँ की सोने- सी बालियों की

चमक में 

उसे ऐसी ही हुई थी प्रतीति,

 

मैं नहीं जानती मेरी भविता

मेरे अतृप्त जीवन ने तो

मन की 

बंजर पड़ी जमीन पर

अभी- अभी कुछ शब्द बोए थे

भावों की खाद डालकर

अनुभूति के पानी से सींचा ही था

कि देखा- 

कल्पवृक्ष- सी

वहाँ उग आई कविता।

 

और ऐसा लगा

मुझको जो चाहिए

जीने के लिए 

मेरे कहने से पहले

पलभर में वो सबकुछ लाक

मेरे हाथ पर रखने आ गए पिता।

-0-



Sunday, October 13, 2024

1436

 

रश्मि विभा त्रिपाठी

1


मुट्ठी से सरक रहे

रेत सरीखे अब

रिश्ते यों दरक रहे।

2

आँसू की धार बही

हमको रिश्तों की

जब भी दरकार रही।

3

फिर नींद नहीं आई

हमने जब जानी

रिश्तों की सच्चाई।

4

बनकर तेरे अपने

लोग दिखाएँगे

केवल झूठे सपने।

5

किसका मन पिघल रहा?

इंसाँ ही अब तो

इंसाँ को निगल रहा!

6

जग से कुछ ना कहना

जग है सौदाई

चुपके हर गम सहना।

7

देखा तुमने मुड़के

जाते वक्त हमें

हम जाने क्यों हुड़के।

8

दो दिन का मेला है

जीवन बेशक पर

हर वक्त झमेला है।

9

घबराता अब दिल है

रिश्ते- नातों से

हमको यह हासिल है।

-0-