बँधी उन्हीं से डोर
रामेश्वर काम्बोज ‘'हिमांशु'
1
मधुर-नधुर बोलें वचन ,भीतर कपट कटार ।
मौका मिलते ही करें, सदा पीठ पर वार ॥
2
वही दिया रौशन रहे, जिसमें होता तेल ।
स्नेह-भावना के बिना , कविता बनती खेल ॥
3
छल-प्रपंच के सह लिये ,अब तक अनगिन वार ।
कभी तोड़ पाया नहीं , हमें कोई प्रहार ॥
4
धन-दौलत न बाँध सके, हमको अपने छोर ।
प्यार हमें जिनका मिला , बँधी उन्हीं से डोर ॥
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