1-चलो,प्रीत के दीप जलाएँ - डॉ.योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’
हम उजियालों के प्रहरी हैं,
अंधियारों से कैसा नाता?
चलो,प्रकाश के दीप जलाएँ!
आशाओं के स्वप्न संजो कर,
हम तो बढ़ते हैं नित आगे!
चरणों की गति देख हमारी,
बाधा हम से डर कर भागे!!
साहस का वरदान लिए हम,
अभिशापों से कैसा नाता?
नित आशा के दीप जलाएँ!
देह हमारा प्रेय बनी कब?
आत्म-तत्व के रहे पुजारी!
व्यष्टि छोड़,समष्टि को चाहा,
परमार्थ बना साधना हमारी!!
युग - निर्माण हमारी मंजिल,
विध्वंसों से कैसा नाता?
नए सृजन के दीप जलाएँ!
विश्व बने परिवार हमारा,
यही हमारा लक्ष्य रहा है!
युग की खातिर जिए सदा हम,
औरों की खातिर दुःख सहा है!!
यह वसुधा परिवार हमारा,
फिर किससे नफरत का नाता?
चलो, प्रीत के दीप जलाएँ!
-0- पूर्व प्राचार्य, 74 /3,न्यू नेहरु नगर,
रूडकी-247667
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2-दिवाली के दिये- मंजूषा मन
लाए गए
नहलाए गए
पूजा में रखे गए
घी-तेल से पूरे गए
जलाए गए....
घर-आँगन,
मुँडेर,
छत के कंगूरों तक
सजाए गए
बुझे तो फिर जलाए गए
हवा से बचाए गए.....
और
दूसरे ही दिन
धूप सही
कंगूरों से गिरे
लुढ़के इधर उधर
पड़े रहे ढेर बन,
टूटे,
तोड़े गए
इकट्ठा करके
कोने में छोड़े गए...
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3-दीप जला कर !- डॉ सरस्वती माथुर
चौखट पर जो
दीप धरा है
उसमें नेह का
उजियार भरा है
दीप जला कर
तारो को जोड़ा है
अँधियारा तो
जीवन का रोड़ा है
बांध कर संबल
बाती में विश्वास भरा है
झर झर झरती है
ज्योति की लड़ियाँ
सूनी चौखट पर
भावो की सुधिया
तमस भी हमसे
देखो- आज डरा l
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4-बाती तुम जलती हो !- डॉ सरस्वती माथुर
तिमिर मिटा कर
घर आँगन में
सूरज सी तुम
स्नेहसिक्त नेह दीप में भर्
बाती तुम जलती हो
पर्व ज्योतिर्मय
राग द्वेष हटा
प्रेम प्रीत सिखाता है
राग द्वेष हटा
अन्तर्मन आलोकित कर
बाती तुम जलती हो
मावस की शाम को
आस्था की चौखट पर
मन के अँधियारों में भी
विश्वास का नव उजियार भर
बाती तुम जलती हो l
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5- रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
कौन
बड़ा कौन है छोटा,
जान
कौन पाया।
छोटे -से दीपक ने देखो,
हर तमस हराया।
इसलिए
मेरा कहना है-
हार
नहीं मानो।
जीवन
के अँधियारों को
कुचलेंगे ठानो ।
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