पथ के साथी

Saturday, December 23, 2023

1391-पद्म प्रतिमा (सॉनेट)

 मूल रचयिता (ओड़िआ) - इं. विष्णु साहू 

 अनुवाद - अनिमा दास, कटक, ओड़िशा 

स्वर्णिम तनु की चंद्रकिरण में तरल लास्य कर द्रवित

चिरयौवना तुम कर कामना की शिखा प्रज्जलित

मुकुलित हो तुम किसी मंजरी वन में.. हे, अभिसारिका!

नहीं हूँ कदापि भ्रमित कि भिन्न है तुम्हारी भूमिका।

 

चारण कवि की चारु कल्पना तुम तरुण तरु की छाया

नृत्यशाला की मृण्मयी हो तुम मग्नमृदा की माया

तिमिर-तट की शुक्र तारिका तुम हो मुक्ता कुटीर की  

मंजुल तुम्हारे देह-देवालय जैसे अग्नि में ज्योति सी।

 

जिसके हृदय में नहीं रही कभी कोई प्रेयसी-रूपसी 

उसे नहीं है ज्ञात कि किस सुधा से पूर्ण है काव्यकलशी 

हे,मधुछंदा! तुम्हारी सुगंध से सुगंधित मेरी नासा

मन में भर दी है तुमने भावपूरित तरल काव्यभाषा।

 

तुमने किया है परिपूर्ण  जीवन-पात्र मेरा.. हे,परिपूर्णा!

नयन में नृत्य करती छलहीन तुम्हारी पद्म प्रतिमा।

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