पथ के साथी

Thursday, March 24, 2016

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1-आहट फागुन की-कृष्णा वर्मा

पुरवा नेह बरसाए
आहट फागुन की
रितु चपला जो लाए।

सूनी गलियाँ चहकीं
फाग महक ओढ़े
जो ठुमक-ठुमक ठुमकी।

बासंती छवि न्यारी
सुखद करे तन-मन
ज्यों शिशु किलकारी।

कण-कण माटी हरषा
फाग के गीतों की
चहुँदिश सतरंग वर्षा।

हरियल रंग ओढ़ चूनर
लतिका लचक रही
जूड़े में खोंस कुसुम।

घूँघट सरकाए गया
अरुण कपोलों पे
रंग चटक लगाए गया।

नव कुमकुम नवल अबीर
प्रेम छिड़क रंगे
साँवरा सखियन चीर।

गोरी भई मतवारी
नेह का रंग नयन
भर मारी पिचकारी।

छीनी गागर मोरी
बरबस छलिया ने
मल दी गालन रोरी।

मरोर बहियाँ मोरी
घना भिगोय गया
किसना कर बरजोरी।

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2-जीवन है चक्रव्यूह-कृष्णा वर्मा 
1
जीवन है चक्रव्यूह
तो कैसा त्रास 
तुझमें निहित है 
अभिमन्यु आप।
2
भेदेगा इसको बस 
तेरा ही ताब  
मरने से डरता कब 
जीने का ख़्वाब। 
3
कुछ ना कर पाएँगे 
जग वाले तेरा 
जिस दिन मिटा देगा 
डर वाला घेरा। 
4
तू ही ख़ुद खुशियाँ 
तू ही बनवास 
तेरे ही हाथों 
रच कैसा इतिहास। 
5
उठ थाम ले आज 
शक्ति पतवार
 छिद्रित नैया भी 
लग जाएगी पार। 
6
शामों सहर 
खुशियों का सफ़र
कोमल से तन में 
प्राण मुठ्ठी भर
7
खुशनुमा बनत 
बांका रंग-रूप
दिल जाए सदके देख 
ओजस्वी स्वरूप
8
बागों का शृंगार
भौरों का प्यार  
गंध का सौदागर 
लुटाए  खुमार 
9
किताबों में सोए 
जगाए हिय प्यार 
बीता दोहरा के 
करे अंतस गुलज़ार 
10
पुष्पों का समरूप 
अनोखी मिसाल 
महके पूर्णत:
चरण हों या भाल 
11
शूलों घिरा फिर 
ना पीड़ा जताए 
फ़ितरत गुलाब की 
मुसकानें लुटाए। 

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