पथ के साथी

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Wednesday, April 23, 2025

1458

 दोहे

सुशीला शील



1.

धरती हमको पोसती, कर नाना उपकार।

शीतल जल, फल सँग हवा, सुंदरतम उपहार।।

2.

धरती को तू माँ समझ, देख हुआ क्या हाल।

चोटिल अंग-प्रत्यंग हैं, बेटा बन संभाल।।

3.

हरी-भरी रखना धरा, कहीं न जाए सूख।

डॉलर-रुपयों से नहीं, मिटे पेट की भूख।।

4.

धरती-सी रहना सदा, सहना दुख चुपचाप।

ठंडी-ठंडी छाँव दे, हरना जग का ताप।।

5.

गरजे पर बरसे नहीं, और बढ़ायी प्यास।

निर्मोही बादल हुए, तनिक न आए पास।।

6.

लहकी फसलें खेत में, शीतल बहे बयार ।

हलधर का पुलका जिया, पा धरती का प्यार।।

7.

पीली चूनर ओढ़कर, कर पूजा के फूल।

कहती संत वसुंधरा, चल मन हरि के कूल ।।

8.

हर मुश्किल छोटी लगे, पड़ें जहाँ भी पाँव।
मीत मिलें पग-पग तुझे, बस ख़ुशियों के गाँव।।

9.

न्यायपालिका ही नहीं, करे समय पर न्याय।

दुखियारे फिर अन्य क्या, बोलो करें उपाय।।

10.

 श्वेत-श्याम सब सामने, हों मौजूद प्रमाण।

 घोटें न्यायाधीश क्यों, वहाँ न्याय के प्राण।।              

11.

लोकतंत्र के ह्रास को, रोको करो उपाय।

भ्रष्टाचारी को सजा, जनता को दो न्याय।।

 

Saturday, November 16, 2024

1439

 

दोहे - विभा रश्मि (गुड़गाँव)


1

ओसारे में रात भर, भीगा पीत गुलाब।

रूप दिया फिर भोर ने, छिटका अमित शबाब।।

2

बिछे डगर में शूल जब, करें पाँव में छेद।

करके लहूलुहान भी, जतलाते ना खेद।।

 3

रिश्ते सब ओछे हुए, कैसे पले लगाव।

चिंदी- सा ईंधन बचा, कैसे जले अलाव।।

4

फुलवारी क्यारी कहे, सुन ले मन की बात। 

बिखरा सरस सुगंधियाँ, हँस ले सह आघात।। 

5

सुबह की नरम धूप खा, झूमी हरियल घास।

पीत रंग का पुष्प खड़ा, जगा रहा था आस।।

6

जन्मों का बंधन बँधा, जीता मन का साथ।

फिर क्यों मेरे हाथ से, छूटा तेरा हाथ।।

7

चलें हवाएँ विष भरी, दूषित हर जलधार।

कुदरत भी है सोचती, किसने ठानी रार।।

8

सघन कुहासा है तना, धुँधली हुई उजास।

सभी नज़ारे छुप गए, मनवा हुआ उदास।।

9

जल जिस साँचे में पड़े ,लेता वह आकार।

ऐसा ही सज्जन सदा, करते हैं आचार।।

10

किरणें नहलाती रहीं, उपवन झील पहाड़।

तिल जैसे नन्हे घटक , बनना चाहें ताड़।।

-0-

Friday, June 7, 2024

1421

  रश्मि विभा त्रिपाठी

1
कैसा दुनिया में हुआ
, लागू यह कानून।
करता अपना ख़ून ही, अब अपनों का ख़ून।।
2
घर की हालत क्या कहें, कैसे हैं परिवार।
हर आँगन में उठ गई, अब ऊँची दीवार।।
3
प्यार- मुहब्बत है कहाँ, किधर दिलों का मेल।
दुनिया में अब चल रहा, बस पैसे का खेल।।
4
आज गले में झूठ केपहनाते सब हार।
सच बेचारा हर तरफ, झेल रहा बस मार।।
5
आज ज़माने में चली,  कैसी सुंदर रीत।
बहरे बैठे सुन रहे,  सबके मन का गीत।।
6
आज कपट की राह मेंबिछे हुए हैं फूल।
सच्चाई अब तो हुईबस पाँवों की धूल।।
7
मीरा- मोहन- सा कहाँ, आज रहा है प्यार।
कलियुग में तो बन गया, अब यह इक व्यापार।।
8
घटना हर अख़बार की,  ये ही करती सिद्ध।
आज आदमी बन गया, सचमुच में इक गिद्ध।।
9
अपने घर- संसार में, लग ना जाए आग।
दो पैरों वाले बहुतबाहर घूमें नाग।।
10
गर्व न ऐसा तुम करोये ही कहता ईश।
रावण ने जिस गर्व से, कटा लिये दस शीश।।
11
जाने किसने कर दियालागू अध्यादेश।
जंगल के सब भेड़ियो, धर लो मानव- वेश।।
12
घर की छत पे भी कभी, नहीं बोलता काग।
पहले- सा अब ना बचा,  सम्बन्धों में राग।।
13
कहीं किताबों में छुपे, मिलते नहीं गुलाब।
चाहत राँझा- हीर की, अब तो है बस ख़्वाब।।
14
मुरझाए, सूखे पड़े, सभी प्यार के फूल।
मन के जंगल में उगे, जबसे घने बबूल।।
15
नाहक सच्चे प्रेम की, तुम करते हो आस।
इस जग में अब रह गया, केवल भोग- विलास।
16
पक्ष झूठ का नहीं लिया, कह दी सच्ची बात।
फिर उसको संसार नेबना दिया सुकरात।।
17
खून- पसीना एक कर, पाला राजा- पूत।
बड़ा हुआ तो बन गया, हाय वही यमदूत।।
18
छली अधम औ हैं यहाँ, डाकू, लम्पट, चोर।
इस जीवन की सौंप दें, कहिए किसको डोर।।
19
पल- पल आज बदल रहा, जाने कितने रंग।
मानव को यूँ देखकरगिरगिट भी है दंग।।
20
कितना अच्छा देख लो, दुनिया का यह पाठ।
हमको लोग पढ़ा रहेसोलह दूनी आठ।।
21
लक्ष्मण रेखा द्वार पे, इसीलिए दी खींच।
छद्मवेश ले फिर रहेरावण औ मारीच।।
-0-

Thursday, September 28, 2023

1374

 दोहे

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

1

गर्म तवे पर बैठकर, खाएँ कसम हज़ार ।

दुर्जन सुधरें ना कभी, लाख करो उपचार॥

2

चाहे तीरथ घूम लो, पढ़ लो  वेद, पुराण ।

छल -कपट मन  में भरे, हो कैसे कल्याण ॥

3

वाणी में ही प्रभु बसे, मन में कपट- कटार ।

लाख भजन करते रहो, जीवन है बेकार ॥

4

आचमन कटुक वचन का, करते जो दिन -रात ।

घर -बाहर वे बाँटते, शूलों की सौगात ॥

5

उऋण कभी होना नहीं, मुझ पर बहुत उधार।

 कभी चुकाए ना चुके, इतना तेरा प्यार

6

जीवन में मुझको मिले, केवल तेरा प्यार

जग में फिर इससे बड़ा, कोई ना उपहार

7

श्वास -श्वास प्रतिपल करे, इतना सा आख्यान।

जीवन में हरदम मिलेतुम्हें प्यार सम्मान.                 

-0-

Monday, June 26, 2023

1335

 

डॉ. सुरंगमा यादव

(  एरिक जेम्स टकर कैप्टन एरिक जेम्स टकर ,  (21 अक्टूबर 1927 - 2 अगस्त 1957) भारतीय सेना के एक अधिकारी थे, जिन्हें मरणोपरांत नागालैंड में वीरतापूर्ण कार्य के लिए सर्वोच्च वीरता पुरस्कार, अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था।)



1

दिन न् सत्ताईस का, अक्टूबर था मास।

 ‘जेम्स टकर’ के जन्म से, घर में हुआ उजास।।

2

वीर ‘टकर’ के शौर्य का, चमक रहा दिनमान।

सत्तावन में हो गया,  भले देह अवसान।।

3

 ‘वीरा’ के वे पुत्र थे, ‘एरिक’ उनका नाम।

 साँसें अपनी कर गए, भारत माँ के नाम।।

4

वीर शिरोमणि थे टकर, शत्रु ना पाया पार।

 दुश्मन को ललकार कर, विफल किया हर वार।।

5

आजादी के बाद का, पहला था विद्रोह।

 नागा दल से भिड़ ग, छोड़ ‘टकर’ सब मोह।।

6

 नागा विद्रोही बड़े, गुरिल्ला हैवान।।

 उनके सर्वविनाश का, जेम्स लिया मन ठान।।

7

दुश्मन की घुसपैठ थी, नागा हिल्स के पास।

एरिक ने कौशल किया, हुआ विद्रोह हताश।।

8

दुश्मन को ललकारते, ठहरे ना एक ठाँव।

 देह हताहत थी मगर, बढ़ते जाते पाँव।।

9

 प्राणों की चिंता नहीं, पथ बीहड़ अंजान ।

 शीश हथेली पर रखा, मातृभूमि का मान।।

10

 भूखे प्यासे लड़ रहे, सरहद पर जो वीर।

 उनके कारण ही सजे, दीपक और अबीर।।

11

 वीरों के वीरत्व से, भारत माँ का मान।

  वक्त पड़े चूके नहीं, अर्पण कर दें प्राण।।

12

दृढ़ता और संकल्प से, किया सफल नेतृत्व।

 अचरज में जग देख कर, मूर्तिमान वीरत्व।।

13

चेहरे पर आभा नई, रक्त रगों में वीर।

 दुर्गम पथ, जंगल घने, हुआ न विचलित वीर।।

14

 पदक वीरता का मिला, शौर्य प्रतीक ‘अशोक’।

 अंबर पर गाथा लिखे, उनका यश आलोक।।

15

भूल गया इतिहास जो, वीरों का बलिदान।

 व्याकुल चैन न पाएँगे, भारत माँ के प्राण।।

16

सैनिक ही वह था नहीं, था माँ का भी लाल।।

 उसका भी परिवार है, इसका रहे ख्याल।।

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Monday, September 19, 2022

1245-तेरा पावन प्यार।

 

रश्मि विभा त्रिपाठी

1
तुम बोलो सुनती रहूँ
, मधुरिम ये आवाज।
तुमसे ही तो है सधासाँसों का यह साज।।
2
तकिया तेरी बाँह का, थपकी देते हाथ।
मेरे सुख की नींद का, कारण तेरा साथ।।
3
मेरे दुख से हो दुखी, ढूँढा तुरत निदान।
पाया तेरे रूप मेंज्यों मैंने भगवान।।
4
उल्टा पड़ता आज तोलू का हर इक दाँव।
तेरा प्यार मुझे हुआवट की प्यारी छाँव।।
5
धन- दौलत, पद, नाम की, कैसी है दरकार।
मुझको बरकत दे रहातेरा पावन प्यार।।
6
घोर अँधेरे में धरेरोज दुआ के दीप।
प्रेम तुम्हारा चाँद- सा, चमका सदा समीप।।
7
इसीलिए तो कट गएबाधाओं के जाल।
तुमने छोड़ा ही नहीं, मेरा कभी खयाल।।
8
कैसे मिलता है तुम्हें, मेरे मन का हाल।
दूरी अपने बीच की, धरती से पाताल।।
9
सरगम मेरी साँस कीछेड़ सुनाते राग।
तुमने मन का कर दिया, हरा- भरा यह बाग।।
10
करते हो नित नेम से,  मेरी खातिर जाप।
मीत मुझे लगता नहीं, तभी समय का शाप।।
11
चुभ सकता है क्या भला, मुझको कोई शूल।
मीत तुम्हारा प्यार येहै पूजा का फूल।।

Thursday, September 8, 2022

1243

 

1-दोहे- रश्मि विभा त्रिपाठी

1

मन की वीणा पे हुआ, स्वत्व तुम्हारा मीत।

धड़कन में तुम गूँजते, बनकरके संगीत।। 

2

जोड़ दिया तप से सदा, मन का टूटा तार।

मेरी साँसों का तभी , बजने लगा सितार।।

3

पढ़ लेते इक साँस में, इन होठों का मौन।

सच बतलाओ आज ये, आखिर तुम हो कौन।।

4

तुम्हें जुबानी याद है, मेरा सारा हाल।

भाव तुम्हारे हो गए, अब गुदड़ी के लाल।।

5

जीवन में अब क्या बचा, टूट गई हर आस।

साँस तुम्हीं पर ही टिकी, तुम रखना विश्वास।।

6

नीरवता में हास का, बज उठता है  साज।

जिस पल आकर तुम मुझे, देते हो आवाज।।

7

तुमने समझाया मुझे, जीवन का यह मूल।

मौसम ने डपटा बहुत, डरा न खिलता फूल।।

8

बड़े बेतुके लग रहे, राहों के ये शूल।

मेरे गजरे में गुँथे, आशीषों के फूल।।

9

प्रियवर तुम जीते रहो, खिलो सदा ज्यों फूल।

जग- जंगल में ना चुभे, तुमको कोई शूल।।

10

पता नहीं कैसी खिली, अब दुनिया में धूप।

पलक झपकते बदल रहा, सब रिश्तों का रूप।।

11

जग- जंगल में मैं चलूँ, पकड़े तेरा हाथ।

विपदा दम भर रोक ले, छोड़ूँगी ना साथ।।

-0-

2-कपिल कुमार

1

ठण्डी-ठण्डी पवनें

धीरे-धीरे गिरतीं

बारिश की बूँदें

टपरी पर चाय पीते लोग 

हाथ में सिगरेट थामें

चौराहे से गुजरते

प्रेमी जोड़े

हवा में हाथ फैलाते

जोर-जोर से चिल्लाते

"वाह! मौसम" 

वही दूसरी ओर

एक दम्पती

जिसका अठारह-उन्नीस वर्ष का

नौजवान लड़का

उसी चौराहे पर

सड़क दुर्घटना में मारा गया है।

उनके लिए

बारिश की बूँदें

मानो

शरीर पर गिरते अंगारे,

ठण्डी-ठण्डी पवन

ज्येष्ठ की लू। 

2

मौन! 

किसलिए साधा है

यदि तुम अनभिज्ञ हो

तुम्हें उत्सुक होना चाहिए

अंतर ढूँढने में

क्या अंतर है

मूक रहने

और

मूकबधिर होने में। 

3

मेरी सोचो

कितने दिन लगाए

हिम्मत जुटाने में

तुम्हें तो बस

प्रेम-प्रस्ताव पर

हाँ! कहना है। 

4

दफ़्तर के ज्यादातर

हुनरमंद कर्मचारी

जकड़े हुए मिले

दासता की बेड़ियों में

उनका

गलत और सही का

तार्किक निर्णय

दबा हुआ है

वेतनमान

प्रलोभन राशि के

मलबे तले। 

Wednesday, August 31, 2022

1237

 1-प्रेम -ज्योति   (सॉनेट ) / प्रो.विनीत मोहन औदिच्य

 


चाल गज की चले मान से वो भरी

कर नदी पार वो धार से अति डरी

रूप की राशि से ये मुदित मन हुआ

गात कंपित हुआ भाल उसने छुआ।

 

नैन हैं मद भरे होठ भी अधखुले

केश बिखरे हुए  चाँदनी में धुले

लाल अधरों सखी लाज- सी खेलती

काम का तीव्रतम वार- सा झेलती ।

 

हाल बेहाल कर ज्वार जब- जब उठा

प्रेम का पत्र भी कामना ने लिखा 

तीव्र साँसें चलीं बढ़ गई धड़कनें

मैल मन का धुला मिट गई अड़चनें ।

 

 रात भर श्याम ने नृत्य जीभर किया 

प्रीति निष्काम की ज्योति से भर दिया।।

 -0-प्रो.विनीत मोहन औदिच्य,ग़ज़लकार एवं सॉनेटियर,सागर, मध्यप्रदेश 

--0-

2-दोहे- रश्मि विभा त्रिपाठी 

1

1
तुमसे ही है स्वर मिला
, अधरों को संगीत।

कभी न गाते मैं थकूँतुमको हे मनमीत।।

2

मधुर मिलन को हम प्रिये, क्या होंगे मजबूर।

तन- मन एकाकार हैंकभी न होंगे दूर।।

3

मन से मन का जब बँधे, रिश्ता खूब प्रगाढ़।

लेता प्रेम उछाह यों, ज्यों नदिया में बाढ़।।

4

रूप तुम्हारा देखतीरजनी हो या भोर।

तुम आकरके बस गएइन आँखों की कोर।।

5

पीर जिया में जो उठे, हो पल में उद्धार।

प्रिये तुम्हारा प्रेम हीएकमात्र उपचार।।

6

साँसों में आनंद है, जीवन मेरा स्वर्ग।

मन के पन्ने पे रचे, तुमने सुख के सर्ग।।

7

जग का मेला घूमती, पकड़े तेरा हाथ।

हर वैभव से है मुझे, प्यारा तेरा साथ।।

9

मोल नहीं कुछ माँगता, तेरा भाव समर्थ।

मेरे जीवन को दिया, तूने सुन्दर अर्थ।।

10

मन- मरुथल उमड़ी घटा, झरी नेह की बूँद।

आलिंगन में रोज ही, भीगूँ आँखें मूँद।।

11

फूल दुआ के साथ ले, तुम आए हो पास।

मुझको होता ही नहीं, अब दुख का अहसास।।

-0-