1-शर्तों के कंधों पर-डॉ.सुरंगमा यादव
नफ़रत का हथियार दिखाकर
गीत प्रेम के गाते गाओ
हम बारूद बिछाते जाएँ
तुम गुलाब की फसल उगाओ
लपटों में हम घी डालेंगे
अग्नि- परीक्षा तुम दे जाओ
ठेकेदार हैं हम नदिया के
तुम प्यास लगे
कुआँ खुदवाओ
हम सोपानों पर चढ़ जाएँ
तुम धरती पर दृष्टि गड़ाओ
माला हम बिखराएँ तो क्या!
मोती तुम फिर चुनते जाओ
सिंहासन पर हम बैठेंगे
तुम चाहो पाया बन जाओ
फूलों पर हम हक रखते हैं
तुम काँटों से दिल बहलाओ
अधिकारों का दर्प हमें है
तुम कर्त्तव्य निभाते जाओ
करो शिकायत कभी कोई न
अधरों पर मुस्कान सजाओ
मन भरमाया,समझ न पाया
हम समझें कोई जतन बताओ
अब मत शर्तों के कंधों पर
संबंधों का बोझ उठाओ।
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2-सविता अग्रवाल 'सवि' कैनेडा
1
अनगढ़ी प्रणय की दीवार
टूटी
साँसों की लड़ियाँ
मधु
यामिनी के स्वप्न रीते
वंचना
से, भाव भीगे
सूखे
पड़े हैं सुमन सारे
प्रतिकार
में वायु बही है
बहती
नदी की तीव्र धारा
अभिशाप सिक्त
पथ रोके खड़ी है ।
2
यंत्रों
की मची है दौड़
प्रतिस्पर्धा
की होड़
अपनत्व
हुआ लुप्त
खोया
स्वर्णिम प्रकाश
अभिशप्त
हो रहा
मानव
अस्तित्व
पाने-
खोने की ये
कैसी
आँख- मिचौनी
जीवन
बन गया है
करुणामय
कहानी ।
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