प्रदूषण (अहीर छंद)
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
बढ़ा प्रदूषण जोर।
इसका कहीं न छोर।।
संकट ये अति घोर।
मचा चतुर्दिक शोर।।
यह दारुण वन-आग।
हम सब पर यह दाग।।
जाओ मानव जाग।
छोड़ो भागमभाग।।
जंगल किए विनष्ट।
सहता है जग कष्ट।।
प्राणी रहे कराह।
भरते दारुण आह।।
धुआँ घिरा विकराल।
ज्यों उगले विष व्याल।।
जकड़ जगत निज दाढ़।
विपदा करे प्रगाढ़।।
गूगल से साभार |
दूषित नीर-समीर ।
जंतु समस्त अधीर।।
संकट में अब प्राण।
उनको कहीं न त्राण।।
विपद न यह लघुकाय।
शापित जग-समुदाय।।
मिल-जुल करें उपाय।
तब यह टले बलाय।।
-0-