पथ के साथी

Saturday, November 16, 2013

समीक्षा -जिंदगी यूँ तो

जिंदगी यूँ तो ....... साँसों का एक ख़त खुश्बू के नाम - 
-देवी नागरानी 

ज़िन्दगी यूँ तो ( काव्य –संग्रह): मंजु  मिश्रा ,पृष्ठ:  152, मूल्य 400 रुपये, 
प्रकाशक : प्रवीण प्रकाशन, 4760 - 61  अंसारी रोड, दरियागंज, नई  दिल्ली 110002 

लोग कहते हैं  / कोई गीत लिखो 
मैं उन्हें कैसे बताऊँ/ जिंदगी मुझे लिखती है  …… ! 
चाँद साँसों की देके मुहलत यूँ, जाने यह  ज़िन्दगी हमसे क्या चाहती है ? हम ज़िन्दगी  को जी पाते हैं या नहीं, पर ज़िन्दगी  हमें ज़रूर  जी लेती है :
आज ज़िन्दगी,  कितनी भाग दौड़ भरी हो गई है 
किसी के पास वक़्त ही नहीं है,
पल दो पल ठहरकर कुछ सोचने का 
ज़िन्दगी को ज़िन्दगी की तरह जीने का ! 
रचना संसार कि अपनी कलात्मक आभा है जो फ़िज़ाओं में खुशबुओं को भर देती है.  कविता शब्द के तानों बानों से बुनी हुई एक रचनात्मक वाटिका है  जो विचारों की उधेड़बुन से उपजती है; और अभिव्यक्ति की  कुशलता, मन की गहरी गुफाओं के राज़ बाहर सतह पर लाने में मददगार होती है 
ऐसे ही सबल रचनात्मक आभा के विस्तार में ज़िन्दगी की आहटें टटोलती कैलिफ़ोर्निया में बसी कवयित्री मंजु  मिश्रा अपना परिचय अपनी अनुभूति से अभिव्यक्ति तक के सफ़र के दौरान अपने काव्य संग्रह "ज़िन्दगी यूँ तो " में ज़िन्दगी का निचोड़ कुछ यूँ पेश करती हैं जिससे आभास होता है कि वह ज़िन्दगी की हर पगडण्डी से गुज़री हैं - 

जिंदगी जीना, एक हुनर- सा है 
जो सीख गया, वो ज़िन्दगी की बाज़ी जीता, नहीं तो हारा ! 
पढ़ कर लगा जैसे साँसों का ख़त खुश्बू के नाम लिखा हो.  रचना का जन्म कोरे सिद्धांतों या वैचारिक आदर्शों की प्रेरणा से नहीं;बल्कि वास्तविक सृजनात्मक अनुभूति से होता है, जहाँ विचार मन की सर्वश्रेष्ठ क्रिया होती है. विचारधारा एक रसायन है ,जिससे भाव के अनुकूल भरपूर फसलें उपज पाती हैं और शब्दों की उलझन, उनका टकराव एवं संधि करना ही रचना को दशा और दिशा देता है  …ज़िन्दगी से वास्ता रखती उनकी सिलसिलेवार सोच उनकी इस बानगी में देखिये : 
आज ज़िन्दगी !
कितनी भाग-दौड़ भरी हो गई है;
किसी के पास / वक़्त ही नहीं है 
दो पल ठहरकर / कुछ सोचने का !
ज़िन्दगी को ज़िन्दगी की तरह जीने का   …… ! 
कविता चिंतन, मनन, मंथन का प्रतिरूप है, प्रकृति भी कही न कहीं नदी की तरह लहराती, बलखाती, जानी-अनजानी राहों से गुज़रती अपनी निश्चित सतह पर थाह पा लेती है।  "ज़िन्दगी यूँ तो.……!" भी कुछ इसी तरह रवां जवानी -सी इठलाती बलखाती चल रही है जिसमे समाहित हैं आज़ाद रचनाएँ, मुक्तक, अशआर, ताँका, हाइकू, दोहे ! इन अभिभूत करती रचनाओं का कारण ।रामेश्वर काम्बोज "हिमांशु" के शब्दों में क्या कहता है देखें…"मंजु  जी का व्यापक अनुभव, जीवन के प्रति संतुलित और सुलझी हुई  सोचअपनी तोतली बोली में मानवता के हर अहसास को शब्दों में शिल्प रूप देकर अभिव्यक्त करना एक कला है जिसमे मंजु  जी ने दक्षता हासिल की है।  कलम की नोक से आकुल-व्याकुल भावनाएं प्रवाहित होते हुए हर मानव मन को नमी की कगार पर ले आती हैं।  
"मेरे आँगन की टूटी दीवार से / जब धूप  झांकती है हर सुबह / फूटती हैं ज़िन्दगी की किरणें / चटकती हैं हंसी की कलियाँ / सहरा सी जिंदगी बन जाती है नखलिस्तान एक ही पल में  …… !
वाह ! अभिव्यक्ति भाषा का सत्य, साहित्य का शिवम् एवं संस्कृति का सुंदरम् को  दर्शा रही है।  अपने मन की  आज़ादी की परिधियों को लाँघते हुए कवयित्री का मन कल्पना के परों पर परवाज़ करता कभी सोच की एक टहनी पर बैठता है तो कभी दूसरी पर…… चाहे वह बसेरा कुछ पल का ही क्यों न हो : रिश्तों की तंग दीवारों से, उस सीलन भरे माहौल से रिहाई पाने के लिए घुटन के उस चक्रव्यूह को तोड़ते हुए उनकी कलम की जुबानी सुनें : 
-बेजान होते हुए रिश्तों तले / दम टूटता है 
 दिल के अंदर आंसुओं का / समंदर फूटता है 
आगे ईंटों की अनबन से धँसती हुई दीवारों की तरह ढहते हुए रिश्तों के लिए उनका कथन है :-
क्यों नहीं / मरे हुए रिश्तों को / बस एक बार में दफ़नाकर / मौन शोक मना लेते हैं लोग / आखिर क्यों / कभी साथ साथ जिए / प्यार और संवेदना के क्षणों का / पोस्टमार्टम करने पर उतर आते हैं लोग .... 
रिश्तों की परिभाषा में एक और कड़ी जो  विचारों में तहलका मचा देती है, कहीं कच्चे धागों से गुँथे पक्के रिश्ते बिना शर्त, बिन अनुबंध स्थापित हो जाते है और कहीं कहीं :
एक घर में - साथ रहने भर से / रिश्ते नहीं बनते / रिश्ते बँधने या / बाँधने के लिए नहीं होते / रिश्ते होते हैं एक दूसरे को सँभालने के लिए !! 

कवयित्री का मन रिश्तों की सुरक्षा के लिए उस घनी छत की तलाश में है जो कड़ी धूप, तेज़ बारिश से मानव को बचा ले। 
मानव मन परिस्थितियों के दायरे  में जीने का आदी हो जाता है और उम्र की पगडंडी पर चलते चलते अनेक पड़ावों पर धूप-छाँव के साये में रहकर कई बातें समझने लगता है, उनसे जूझने की कोशिश में अपने इल्म और हुनर के दायरे में पनपते हुए सृजनात्मक निर्माण की सहज प्रवृत्ति जो उसके भीतर उमड़ती है उसे अभिव्यक्त किए बिना नहीं रह सकता। अपने ही अंतर्मन की गहराइयों में  उलझी हुयी गुत्थियों को सरलता से सुलझाकर अपनी शंकाओं का समाधान पाने की ललक में कभी-कभी अपनी सोच के जाल में फंस जाने की बेबसी में कह उठता है –
जीवन में / जाने कितने प्रश्न चिह्न / जिन्हें हम / या तो जान कर / या अनजाने में /   यूँ ही छोड़ देते हैं / और पूरी ज़िन्दगी / बस …  उन्ही के साथ जीते  हैं.... ! 
 एक मानव मन, अनगिनत आशाएँ तमन्नाएँ !! क्षणिकाओं में उभरे अक्स सामने झिलमिलाते हैं मंजु जी की कलाकृति में :-
रिश्ते, बुनी हुयी चादर / 
एक धागा टूटा / बस उधड़ गए 
          **
हमेशा अनबन सी रही 
आँखें और होंठ / अलग अलग राग लापते रहे ! 
         **
चलो जुगनू बटोरें / 
चाँद तारे मिलें न मिलें 

कल्पना और यथार्थ के बीच का सफ़र, जीने की कला को दर्शाती उनकी सोच के ताने बाने, हमें एक आशावादी सन्देश दे रहे हैं :-
तमन्नाएँ ही जीवन हैं, इन्हे जी भर सँवारों तुम 
तमन्नाएँ नहीं होंगी, तो जी कर क्या करोगे तुम ! 
संग्रह के आगाज़ में सुधा गुप्ता जी ने खूब कहा है, "शिल्प देखें तो विधाओं की दृष्टि से वैविध्य, भाव देखें तो मन की तरंग है, शैशव की स्मृति है, पलाश है, कचनार के खुशनुमा रंग हैं ! "
ज़िन्दगी यूँ भी  रिश्तों में जी जाती है पर इसे जीने का हुनर ज़िन्दगी के अग्नि पथ पर कदम दर कदम चलते हुए अपनी मंज़िल पा लेता है 
मंजु जी के इस अद्भुत कलात्मक कृति के लिए मेरी हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं 
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देवी नागरानी ,4 80 W, Seirg St
Elmhurst IL 6025