कमला निखुर्पा
साँवली
रात जागती रही
तारों के साथ ।
बादलों का तकिया
लगा
ऊँघता
रहा चाँद ।
यादों की ओस
झरती रही बूँद-
बूँद
पलकों से रात भर
भीगता रहा सपना ।
झुलाती रही हवा
पवन हिंडोला
झूमी रात रानी
टूटी बिखर गई
पर फिजाँ महका गई ।
अभी -अभी
तो झपकी थी
बोझल -सी
अँखियाँ
कच्ची नींद से
भोर ने जगाया तो,
कुनमुनाई,रूठीं, रो पड़ी ।
-0-
( प्राचार्या, केन्द्रीय विद्यालय नं 2 , कृभको सूरत)
07.08.2015