प्यार से अधिकार से/ स्वाति बरनवाल
तुम्हें बुला रहे कब से
प्यार से, अधिकार से!
तुम शहर के
मैं गाँव की
ये दिन फाग के
सज रहे रंग और राग से!
ख़्यालात रहे प्यार के
नशा छाई होली से!
दही-बड़े उरद के
बर्फी सजी केसर से
स्वाद रहा इलायची का
असर रहा भाँग से!
घाघरा रहा रेशम का
चुन्नी टँकी मोतियों से!
चेहरा रहा लाल
मलती रही गुलाल
बंसी रही बाँस की
बजती रही साज से!
चलो सींचे जीवन सुंदर
प्यार से अधिकार से!
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