पथ के साथी

Wednesday, April 17, 2024

1412- पता ही खो गया

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’


सब भाव खो गए
जीवन खो गया
अचानक भला ये
क्या-क्या हो गया!

जब भाव थे मरे,
भाषा भी मरी

हर बाट हो गई

काँटों  से भरी।

यूँ कहाँ मैं भला
अब ढूँढूँ तुम्हें
हर  कोई यहाँ
शूल ही बो गया।

 

 सूख गए सब रस

कविता खो गई

पथ भीगा मिला

यूँ साँझ हो गई ।


कंठ भी है रुँधा
स्वर भी गुम हुआ
पास में जो था
पता ही खो गया।