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भावना कुँअर
1
थे पंख उधार लिये
ख़्वाबों की ज़िद में
बादल भी पार किये ।
2
तुमसे बातें करना
पाया है मैंने
अमृत -भरा ये झरना।
3
हरदम गहरे चुभते
काँटों में उलझे
दिल चीरें ये रिश्ते।
4
बचपन को खोया है
बीज अमानुष बन
किसने ये बोया है?
5
कैसी मजबूरी है
रिश्तों की चादर
होती ना पूरी है।
-0-