पथ के साथी

Sunday, June 23, 2013

रिश्तों की चादर

भावना कुँअर
1
थे पंख उधार लिये
ख़्वाबों की ज़िद में
बादल भी पार किये ।
 2
तुमसे बातें करना
पाया है  मैंने 
अमृत -भरा ये  झरना।
3
हरदम गहरे  चुभते
काँटों में उलझे
दिल चीरें ये रिश्ते।
4
बचपन को खोया है
बीज अमानुष बन
किसने ये बोया है?
5
कैसी मजबूरी है
रिश्तों की चादर
होती ना पूरी  है।
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