1-सपना
भीकम सिंह
ना मैं साहिर
ना इमरोज़
पर ढूँढता हूँ
हर रोज
ख्वाबों में
ख्यालों में
अमृता
-
उसका सागर
जहाँ वह
डूबने की हद
पार कर गई ।
प्रेम के शब्द
और
उनकी खुशबू
मर्यादा के अर्थों को
देकर
नई जुस्तजू
पुराने-से
पड़ गए
रिश्तों में
नये आयाम
धर गई
।
मैं
आसक्ति को ओढ़े
सोच रहा था
तट पर बैठे
तभी एक
उच्छृंखल-सी लहर
पहने हुए
दोपहर
टूट कर गिरी
और
तर कर गई ।
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2-अलसाई सुबह
आज का दिन
कुछ आलस से भरा है
आलस थोड़ा तन का
आलस थोड़ा मन का
जिंदगी के चलते रहेंगे लफड़े ।
देह चाहती आज आराम
जी नही करूँ कुछ काम
अलसाई-सी सुबह
पड़ी हूँ निष्प्राण
बिस्तर पर आलस से जकड़े ।
आज अच्छा लग रहा है
बिखरा घर
फैले कंबल
सलवटों से भरी चादर
कुरसी पर रखे बिन तह किए कपड़े ।
टेबल पर रखा चाय का कप
खुला अखबार
नि:शब्द डायरी का पन्ना
मुस्कुराता हुआ पेन
अंजुम त्याग दिए आज सारे पचड़े
।
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