क्षणिकाएँ- रश्मि विभा त्रिपाठी
1
मुहब्बत अब यूँ न हो होगी
निकालकर पहले
अपना- अपना सीना रखेंगे,
बाद में किसी को क्या मुँह दिखाएँगे
हम अभी से ही
सामने आईना रखेंगे!
2
कोई मुख़ातिब न हो सके
हर पल इसी में मुस्तैद,
मुझसे मुहब्बत की है तुमने
या मुझको दी है उम्रक़ैद।
3
मेरी मुहब्बत थी
और
उसकी अना,
हमारे दरमियाँ
कभी
कोई रिश्ता नहीं बना।
4
खुद को सौंपा जिसे-
वो फिर भी
न कर सका हासिल
बताओ!
किसका कसूर है इसमें
बताओ! कौन है जाहिल?
5
तुममें ये ख़ुराफ़ात
आख़िर
कहाँ से आती है?
मुहब्बत तो
इंसान को
सिर्फ़
इंसान बनाती है।
6
आओ!
कभी खुलकरके
बात करें
रिश्तों में बढ़ते गैप पर,
ये क्या कि भेजते रहते हैं हम
एक- दूसरे को
इमोजी व्हाट्स ऐप पर?
7
एक शख़्स मिला
हमको बड़ा अनोखा!
होठों पर प्यार
और दिल में लिये धोखा।
8
किसे अपना बनाएँ,
यही उलझन बड़ी है!
मुहब्बत में तो अब
केवल धोखाधड़ी है।
9
कभी पुचकारने लगा,
कभी धमकी देकर सितम किया
मैंने उसे चाहा तो
उसने मेरी नाक में दम किया।
10
आज पार कर दी
उसने सारी हद!
आज छोटा हो गया
उसका कद।
11
जिनका सारा दर्द बाँटा,
जिनके सारे जख़्म सिले,
वो ही सीने में खंजर घोंप गए,
कैसे- कैसे लोग मिले!
12
आख़िर टूट गया ना?
हमारे दरमियाँ जो तअल्लुक़ था,
इंसाँ थे इंसाँ बने रहते,
ख़ुदा बनके का क्या तुक था?
13
हमेशा के लिए
मुझसे जुदा हो गया,
एक बुत एक दिन
ख़ुदा हो गया।
14
दफ़न किया है
उसने जहाँ प्यार,
दिल ही में बनी है
उसकी मजार।
15
किसको सच्चा समझें,
किससे रखें आशा,
बच्चे भी तो बोल उठे
अब बड़ों की भाषा।
16
समय!
तुम मेरे गुरु हो द्रोणाचार्य- से
मैं भी एकलव्य- सी देना चाहती हूँ
तुम्हें गुरु दक्षिणा,
तुमने जो दी है दीक्षा कि
मुझसे बुरा व्यवहार न करते
तो मेरे प्रति
प्रेम का दंभ भरते
उन तथाकथित अपनों की
मैं कैसे ले पाती परीक्षा?
17
थे तलबगार
तो महरूमियाँ हुईं मयस्सर,
अब सामने पड़ी है दुनिया,
उठाने का दिल नहीं।
18
उनके हाथों जहर पीकर
हम अब भी जिंदा हैं,
मेरे दुश्मन अब अपनी साज़िशों पे
बहुत शर्मिंदा हैं।
19
शिकवा करें क्या रब से,
क्या दुनिया से गिला है,
जो चाहा जिन्दगी में
यहाँ वैसा कब किसे मिला है?
20
मुहब्बत में मेरे लिए
मत लाना तुम तोड़करके
चाँद- सितारे,
हाँ मगर वादा करो-
दगा करो
तो फिर मर जाना तुम शर्म के मारे!