पथ के साथी

Thursday, September 8, 2022

1243

 

1-दोहे- रश्मि विभा त्रिपाठी

1

मन की वीणा पे हुआ, स्वत्व तुम्हारा मीत।

धड़कन में तुम गूँजते, बनकरके संगीत।। 

2

जोड़ दिया तप से सदा, मन का टूटा तार।

मेरी साँसों का तभी , बजने लगा सितार।।

3

पढ़ लेते इक साँस में, इन होठों का मौन।

सच बतलाओ आज ये, आखिर तुम हो कौन।।

4

तुम्हें जुबानी याद है, मेरा सारा हाल।

भाव तुम्हारे हो गए, अब गुदड़ी के लाल।।

5

जीवन में अब क्या बचा, टूट गई हर आस।

साँस तुम्हीं पर ही टिकी, तुम रखना विश्वास।।

6

नीरवता में हास का, बज उठता है  साज।

जिस पल आकर तुम मुझे, देते हो आवाज।।

7

तुमने समझाया मुझे, जीवन का यह मूल।

मौसम ने डपटा बहुत, डरा न खिलता फूल।।

8

बड़े बेतुके लग रहे, राहों के ये शूल।

मेरे गजरे में गुँथे, आशीषों के फूल।।

9

प्रियवर तुम जीते रहो, खिलो सदा ज्यों फूल।

जग- जंगल में ना चुभे, तुमको कोई शूल।।

10

पता नहीं कैसी खिली, अब दुनिया में धूप।

पलक झपकते बदल रहा, सब रिश्तों का रूप।।

11

जग- जंगल में मैं चलूँ, पकड़े तेरा हाथ।

विपदा दम भर रोक ले, छोड़ूँगी ना साथ।।

-0-

2-कपिल कुमार

1

ठण्डी-ठण्डी पवनें

धीरे-धीरे गिरतीं

बारिश की बूँदें

टपरी पर चाय पीते लोग 

हाथ में सिगरेट थामें

चौराहे से गुजरते

प्रेमी जोड़े

हवा में हाथ फैलाते

जोर-जोर से चिल्लाते

"वाह! मौसम" 

वही दूसरी ओर

एक दम्पती

जिसका अठारह-उन्नीस वर्ष का

नौजवान लड़का

उसी चौराहे पर

सड़क दुर्घटना में मारा गया है।

उनके लिए

बारिश की बूँदें

मानो

शरीर पर गिरते अंगारे,

ठण्डी-ठण्डी पवन

ज्येष्ठ की लू। 

2

मौन! 

किसलिए साधा है

यदि तुम अनभिज्ञ हो

तुम्हें उत्सुक होना चाहिए

अंतर ढूँढने में

क्या अंतर है

मूक रहने

और

मूकबधिर होने में। 

3

मेरी सोचो

कितने दिन लगाए

हिम्मत जुटाने में

तुम्हें तो बस

प्रेम-प्रस्ताव पर

हाँ! कहना है। 

4

दफ़्तर के ज्यादातर

हुनरमंद कर्मचारी

जकड़े हुए मिले

दासता की बेड़ियों में

उनका

गलत और सही का

तार्किक निर्णय

दबा हुआ है

वेतनमान

प्रलोभन राशि के

मलबे तले।