1-दोहे- रश्मि विभा त्रिपाठी
1
मन की वीणा पे हुआ, स्वत्व तुम्हारा मीत।
धड़कन में तुम गूँजते, बनकरके संगीत।।
2
जोड़ दिया तप से सदा,
मन का टूटा तार।
मेरी साँसों का तभी
, बजने लगा सितार।।
3
पढ़ लेते इक साँस में, इन होठों का मौन।
सच बतलाओ आज ये, आखिर तुम हो कौन।।
4
तुम्हें जुबानी याद है, मेरा सारा हाल।
भाव तुम्हारे हो गए, अब गुदड़ी के लाल।।
5
जीवन में अब क्या बचा, टूट गई हर आस।
साँस तुम्हीं पर ही टिकी, तुम रखना विश्वास।।
6
नीरवता में हास का, बज उठता है साज।
जिस पल आकर तुम मुझे, देते हो आवाज।।
7
तुमने समझाया मुझे, जीवन का यह मूल।
मौसम ने डपटा बहुत, डरा न खिलता फूल।।
8
बड़े बेतुके लग रहे, राहों के ये शूल।
मेरे गजरे में गुँथे, आशीषों के फूल।।
9
प्रियवर तुम जीते रहो, खिलो सदा ज्यों फूल।
जग- जंगल में ना चुभे, तुमको कोई शूल।।
10
पता नहीं कैसी खिली, अब दुनिया में धूप।
पलक झपकते बदल रहा, सब रिश्तों का रूप।।
11
जग- जंगल में मैं चलूँ, पकड़े तेरा हाथ।
विपदा दम भर रोक ले, छोड़ूँगी ना साथ।।
-0-
2-कपिल
कुमार
1
ठण्डी-ठण्डी पवनें
धीरे-धीरे गिरतीं
बारिश की बूँदें
टपरी पर चाय पीते लोग
हाथ में सिगरेट थामें
चौराहे से गुजरते
प्रेमी जोड़े
हवा में हाथ फैलाते
जोर-जोर से चिल्लाते
"वाह! मौसम"।
वही दूसरी ओर
एक दम्पती
जिसका अठारह-उन्नीस वर्ष का
नौजवान लड़का
उसी चौराहे पर
सड़क दुर्घटना में मारा गया है।
उनके लिए
बारिश की बूँदें
मानो
शरीर पर गिरते अंगारे,
ठण्डी-ठण्डी पवन
ज्येष्ठ की लू।
2
मौन!
किसलिए साधा है
यदि तुम अनभिज्ञ हो
तुम्हें उत्सुक होना चाहिए
अंतर ढूँढने में
क्या अंतर है?
मूक रहने
और
मूकबधिर होने में।
3
मेरी सोचो
कितने दिन लगाए
हिम्मत जुटाने में,
तुम्हें तो बस
प्रेम-प्रस्ताव पर
हाँ! कहना है।
4
दफ़्तर के ज्यादातर
हुनरमंद कर्मचारी
जकड़े हुए मिले
दासता की बेड़ियों में,
उनका
गलत और सही का
तार्किक निर्णय
दबा हुआ है
वेतनमान
प्रलोभन राशि के
मलबे तले।