पथ के साथी

Friday, December 4, 2020

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 1-दीपक अभी - अभी जले हैं- मीनू खरे

 

गुलाबी ठंड 

सुरमयी शाम का वक़्त

दीपक बस अभी अभी जले हैं

फ़िज़ाओं में फैली अजब सी कैफ़ियत 

रूमानियत और सिहरन

अपनी चोटी में गुँथे  

बेले के गजरे की छुअन से सिहर मैं

देखती हूँ चारों ओर 

तुम अक्षर-अक्षर आने लगते हो शब्दों में

लिखने लगती हूँ कविता 

बनने लगते हैं भावनाओं के ख़ूबसूरत महल 

मोहब्बत की ख़ूबसूरत खिड़कियों से 

झाँकते दिखते हैं कुछ अनचीन्हे अक्स

पास जाती हूँ देखने 

अक्स अदृश्य डर का है 

पाने से भी पहले 

तुम्हें खो देने का 

कविता लिख ली गई है

शाम गहराने लगी है 

दीपक अभी भी जल रहे हैं

-0-

2- रात गई -वीरबाला काम्बोज

 

रात गई बात गई

मीठी, मीठी बाते करलें 

  आओ बैठे मिल-जुलकर 

कभी -कभी ख़्यालों में मिल।

 दुःख -सुख मिलकर बाँटे 

ख़पा न होना प्रीतम 

 चाँद न रूठे कभी 

चाँदनी से फिर क्यों दूरी

 -0-

3- स्त्री -अर्चना राय

1

 मन के समंदर में

भावनाओं का

उठता तूफान...  

 देख दायरे अपने

आँखों की कोरों पर.. 

आते- आते..... 

 ज्वार ठहर जाता है

2

जीवन रंगमंच पर

माँ, बेटी , बहिन, पत्नी

हर किरदार में सदा 

रही अव्वल.... 

 स्त्री!!!... 

 अपने ही किरदार में 

 क्यों?...विफल!! 

-0-अर्चना राय, भेड़ाघाट, जबलपुर (म.प्र.)