पुष्पा मेहरा
सुनो सुनो ओ! पलाश
प्रसन्न देख तुम को बन में
जागी इच्छा मेरे भी मन में
थोड़ा- सा रंग तुम्हारा निखरा
तुम से ही ले लूँ मैं उधार ।
भर लूँ अपने ह्र्दय के छोर में
भीगूँ जल में,बाँटूँ जग में
परदु:ख में जी भर मैँ डूबूँ
परसुख को जी भर जी लूँ मैँ
नव शिशु की किलकारी में
ओ! पलाश निश्छल- भाव-रंग घोलूँ
भोले बचपन की खुशियों में-
नि:स्वार्थ भाव -रश्मि भर दूँ ।
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