पथ के साथी

Tuesday, June 14, 2011

पिता के चरण


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

हाथ की रेखाओं में
 होता है कर्मों का लेखा -जोखा;
क्योंकि हाथ में पड़े गट्टे
दिखाते हैं कर्म करने की दृढ़ता
लेकिन
चरण भी बताते हैं अपनी पहचान
दिखाते हैं ज़िन्दग़ी का मुकाम
चरण ही बनाते हैं आचरण
किधर जाते हैं चरण?
वही दिशाएँ
सारा लेखा-जोखा रखती हैं
आचरण का मधुर फल चखती हैं।
वे चरण  जो मेरी दिशा तय करते
बरसों पहले
चुपचाप , बिना बताए
अचानक अँधेरे में गुम हो गए
उन्हें तो अभी नापने थे
ढेर सारे रास्ते
पाने थे बहुत सारे मुकाम
वे चरण इतने प्यारे थे कि
तारों के बीच जाकर
आकाश गंगा में खो गए
और हम उनको छूने के लिए
सिर्फ़ माथा झुकाए रह गए

पर आज चारों तरफ़ महसूस होता है-
उन चरणों के निशान,
उनकी खुशबू,
रास्ता खोजने में मदद करती है
आज भी उन चरणों से
प्यार-दुलार की आवाज़ आती है-
’शाबाश ! बढ़े चलो पुत्तर
ये धरती तुम्हारी है
जिसके चरण सही दिशा में बढ़ते हैं
उसका मज़मून
सारी दुनिया वाले
सदियों तक पढ़ते हैं।”
टप्- टप्- टप्-­ टप्
आँखों का गरम जल
उन निशानों पर टपकता है
वे चरण
और भी उजाला करने लगते हैं
साफ़-शफ़्फ़ाक़ दिखने लगती हैं -
सारी दिशाएँ,
महकने लगती हैं फिज़ाएँ
मेरे शुभ आचरण वाले पिता
आज भी बसे हैं मेरे तन-मन में
फेरते हैं हाथ आज भी
सोते -जागते ,थकान में ,सपन में
देते हैं हल्ला शेरी-
“बढ़े चलो पुत्तर
ये धरती तुम्हारी है
तुम्हें बनानी है दुनिया की नई तस्वीर
तुम्हें लिखनी है एक नई इबारत
और तुम्हें बनाना है
एक नई पगडण्डी
जिससे होकर लोग जा सकें,
जीवन का सत्य पा सकें।”
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