दिनेश चन्द्र पाण्डेय
क्षणिकाएँ
1.
फ्रंट से आया
बेटे का सामान
माँ नें हाथ फिरा
ऐसे दुलारा जैसे बेटा
खुद लौट आया हो.
2.
झुलसाती दोपहर
बनते भवन की छाया में
पल भर को
तसला परे रख
उसने सोचा...
कितना अच्छा होता
यदि संतुलित होते मौसम
गर्मियों में न अधिक गर्मी
सर्दियों में न अधिक सर्दी
बारिश भी नाप तोल कर आती.
3.
बह रही जीवन- नदी
से
भरी थी मैंने भी
दो लोटे पानी से
अपनी गागर
रीती जा रही गागर
बहती जा रही नदी.
4.
खिलने के पहले
ही
तोड़ लिये गुच्छों में
सुर्ख फूल
धूप में सुखाया
फिर आग
पर
तब कहीं
जाकर
लौंग कली की
फैली सुगंध
5.
वर्षा ख़त्म करने का
बादल भगाने का
सीधा सरल उपाय
वृक्ष काट दो
6.
पहाड़ पर घूमता बाघ
उसके हर दौरे के बाद
चरवाहे की भेड़
गिनती में कम हो जाती
बढ़ता जाता बाघ के
मुँह पर लगा खून
7.
रात को गिरती बर्फ़
सो रहा सर्द पहाड़
एक घर से चीख उठी
कुछ बल्ब जले
स्त्री-
पुरुषों की भाग दौड़
सुगबुगाहट शुरू
फिर........
नवजात चीख़ से जागा पहाड़
8.
शाम को थका हुआ
मैं घर आया.
वो गोद में आकर
जीभ से मेरी
थकान उतारता गया.
9.
पहाड़
की नारी
गोरु-बाछ, चारा लकड़ी
कनस्तरों
पानी, खाना
फिर भी....
अधूरा
पड़ा है काम
अस्ताचल
की ओर
भागते
रवि को तरेरती
आँखों
आँखों में डाँटती
10.
शाम के साथ
श्रमिक कंधे पर
कुठार सँभालते
घर को चले
पेड़ों ने भी खैर मनाई
सुबह होने तक
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