1-दोहा-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
ग़म की चादर फेंक दो जब अपने हों साथ।
तन -मन जब डगमग करे,कसकर पकड़ो हाथ।
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2-कुण्डलियाँ -ज्योत्स्ना प्रदीप
1
बोली करुणा से भरी, पिता बड़े ही नेक ।
मिला नहीं फिर से कभी ,वो संबोधन एक।।
वो संबोधन एक ,न उनका कोई सानी।
बिन उनके बेचैन, भरा आँखों में पानी ।।
पिता बसे हैं दूर ,माँ की मौन है होली।
सुनता है दालान ,अभी तक उनकी 'बोली'।।
2
काया बनी पलाश है ,कहाँ सजे हैं रंग।
बाट जोहते नैन ये ,नहीं पिया का संग।।
नहीं पिया का संग ,हृदय है सीला- सीला।
राधा तकती राह, वसन है जिसका पीला।।
मन पर डाले रंग, करे वो कैसी' माया।
संग मेरे नाचे ,माना दूर
है 'काया'।।
3
यामा लेकर आ गई ,चंदा अपने साथ
निखर गई पिय संग से ,तेजोमय है माथ।।
तेजोमय है माथ ,छटा ये बड़ी निराली।
युगों चाँद के साथ ,उसने प्रीत है पाली।।
देख सजन का रंग ,रात नें मन को थामा।
तभी तो चंद्र वदन ,लगाती काजल 'यामा'।।
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3- जिन्दगी की तस्वीर-सुनीता
शर्मा
सोच रही जिन्दगी तेरी
तस्वीर बनाऊँ ,
तेरे विविध रंगों का संसार सबको दिखलाऊँ !
कभी नटखट बचपन का
चेहरा बन जाऊँ ,
कभी अल्हड मस्ती की फुहार बन जाऊँ ,
कभी सपनो का महकता उपवन बन जाऊँ ,
कभी धुंध में सिमटी
यादें बन जाऊँ !
सोच रही जिन्दगी तेरी तस्वीर बनाऊँ ,
तेरे विविध रंगों का संसार सबको दिखलाऊँ !
कभी आकाश सा विराट स्वरूप बन जाऊँ ,
कभी हरियाली धरती की सौंधी खुशबू बन जाऊँ ,
कभी निरंतर बहती सरिता का प्रतीक बन जाऊँ ,
कभी अपूर्णता से पूर्णता का अक्ष बन जाऊँ !
सोच रही जिन्दगी तेरी तस्वीर बनाऊँ ,
तेरे विविध रंगों का संसार सबको दिखलाऊँ !
कभी वर्तमान की चिंता बन जाऊँ ,
कभी भविष्य के सपने बन जाऊँ,
कभी कल के छूटने का दर्द बन जाऊँ,
कभी आने वाले कल की उमंग बन जाऊँ !
सोच रही जिन्दगी तेरी तस्वीर बनाऊँ ,
तेरे विविध रंगों का संसार सबको दिखलाऊँ !
कभी अपने वजूद के मिटने की कसक बन जाऊँ ,
कभी स्वयं को
दोहराने की उमंग बन जाऊँ ,
कभी वृक्षों की
शीतल छाया बन जाऊँ,
कभी सुनामी जैसे अस्तित्व
की सूचक बन जाऊँ !
सोच रही जिन्दगी तेरी तस्वीर बनाऊँ ,
तेरे विविध रंगों का संसार सबको दिखलाऊँ !
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4-इस बार यूँ होली- सत्या शर्मा 'कीर्ति '
कुछ सतरंगी-सी चाहत
यूँ आज मचल रही है
जैसे इस फागुन होली
अनकही भी कह रही है
मेरी हसरतों को तुम
यूँ निखार देना
ले सूरज की धूप सुनहरी
मेरे गालों पे लगा देना
सजा देना माँग मेरी
पलाश कि सुर्ख लाली से
जो चूनर ओढ़ लूँ मैं धानी
रंग बासंती भी मिला देना।
गुलाबों की पंखुड़ियों को
गर
लगा लूँ अपने ओठों पर
मेहँदी -सा रंग मुहब्बत का
मेरे हाथों में सजा देना
रातों से काजल ले अपनी
आँखों में जो भर लूँ मैं
शाम सुनहरी को मेरी पलकों
पे उतार देना तुम
जब महकने लगूँ मैं
बन चम्पा और जूही -सी
जूड़े में मेरे तुम बेला की
लड़ियों को लगा देना
गेंदे के रंग पीले भर लूँ अगर
आँचल में अपने मैं
लाल - लाल महाबर से पैरों को
खिला देना
हाँ , इस बार होली को
इस तरह बना देना
छूट न पाये रंग जो प्रीत का
उस इंद्रधनुषी रंग
भिगा देना तुम
हाँ , इस बार होली में...
मुझे अपने ही रंग, रंग लेना तुम
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