रश्मि विभा त्रिपाठी
मैंने
तुमसे
प्रेम
नहीं किया
बस
अपनी
देह पर तुम्हारी
उँगलियों
के कुछ निशान लिये हैं
बस
अपनी
आत्मा को
तुम्हारी
आत्मा के निकट
ले
जाने का प्रयास किया है
अहो
भाग्य!
मुझे
इसमें पूरी सफलता मिली है;
क्योंकि
जब मेरी आत्मा
आहत
हुई
तुम्हारी
आत्मा में भी
उठी
उसी
समय आकुलता
मैंने
तुमसे प्रेम नहीं किया
बस
तुम्हारे
हृदय की डोर को बाँधा
अपने
हृदय से
और
सचमुच
बड़ी
पक्की है यह डोर
जब
मेरा दम
घुटने
लगता है
तुम
खींच लेते हो मुझे
जीवन
की ओर
मैंने
तुमसे प्रेम नहीं किया
बस
एक
दिन तुम्हें
इसलिए
गले
लगाया था ;
ताकि
तुम्हारी धड़कन
और
अपनी धड़कन की
आपस
में
पहचान
करवा दूँ
जब
मेरा
दिल धड़के जोर से
तब
तुम भी शांत न रह पाओ
उस
शोर से
मैंने
तुमसे प्रेम नहीं किया
बस
तुम्हारे
भुजापाश में
आकर
बिखर
गई
और
तुमने
समेट लिया मुझे
मैंने
तुमसे प्रेम नहीं किया
बस
तुम्हें स्पर्श किया
ताकि
तुम्हारे स्पर्श कीअनुभूति
मेरी
शिराओं में
मैं
जब तक जीवित हूँ
तब
तक
रक्त
बनकर बहे
सुनो
कोई
कुछ भी कहे
जिस
दिन मैं तुम्हें
प्रेम करूँगी
तो
मेरी
देह पर
तुम्हारी
पवित्र उँगलियों
के निशान
साक्ष्य
होंगे
कि
हम
एक
देह
एक
आत्मा हैं,
मेरी
आत्मा में उठेगा
नदी
-सा प्रवाह
तुम
डूब जाओगे
स्वयं
में मुझको ही पाओगे
हमारे
हृदय
एकाकार
होंगे
दूर
होकर भी
खींच
लेंगे एक दूसरे को
अपने
समीप
जब
भी जी चाहेगा
मेरी
धड़कन तुम्हारे सीने में
और
तुम्हारी धड़कन
मेरे
सीने में धड़केगी
तुम्हारी
छाती में छुपी रहूँगी
कोई
बिखेरेगा कैसे मुझे
तुम्हारा
स्पर्श
मुझे
जीवन देगा
जिस
पल मैं तुम्हें प्रेम कर उठूँगी
मेरे
भीतर तुम जन्म लोगे
पलोगे
बढ़ोगे
मेरे
स्त्रीत्व को परम सुख दोगे।