रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
मिट जाएँगी दूरियाँ, होगा दुख का नाश।
आलिंगन में बाँधकर,कस लेना
भुजपाश।
2
तुम प्राणों की प्यास हो,नम
आँखों का नूर।
पल भर कर पाता नहीं,तुमको मन से
दूर।
3
जब ,जहाँ और जिस घड़ी,तुम होते
बेचैन।
दूर यहाँ परदेस में, भर- भर आते
नैन।।
4
खुशी देख पाते नहीं,इस दुनिया के
लोग ।
जलने का इनको लगा,युगों -युगों
से रोग।।
5
हम तुम कुछ जाने नहीं,कितनी गहरी
धार।
गहन प्यार की नाव पर,चले सिन्धु
के पार।
6
तेरे दुख में जागते,कटती जाती रात।
तपता माथा चूमते,हुआ अचानक
प्रात।।
7
कुछ मैंने माँगा नहीं,बस दो बूँदें प्यार।
बदले में दे दो मुझे, अपने दुख का
भार।।
8
अपनों के आगे बही ,मन की सारी
पीर।
हँसी खो गई भीड़ में,मन पर खिंची
लकीर
9
झेलूँ सारी चोट मैं ,ना पहुँचाऊँ
ठेस।
कितने भी संघर्ष हों, दूँ
नहीं तुम्हें क्लेश।
10
युगों- युगों तक भी रहे, अपना यह सम्बन्ध।
करें टूटकर प्यार हम, बस इतना अनुबन्ध।।