पथ के साथी

Friday, April 6, 2018

814-मिट जाएँगी दूरियाँ


रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
1
मिट जाएँगी  दूरियाँ, होगा दुख का नाश।
आलिंगन में बाँधकर,कस लेना भुजपाश।
2
तुम प्राणों की प्यास हो,नम आँखों का नूर।
पल भर कर पाता नहीं,तुमको मन से दूर।
3
जब ,जहाँ और जिस घड़ी,तुम होते बेचैन।
दूर यहाँ परदेस में, भर- भर आते नैन।।
4
खुशी देख पाते नहीं,इस दुनिया के लोग ।
जलने का इनको लगा,युगों -युगों से रोग।।
5
हम तुम कुछ जाने नहीं,कितनी गहरी धार।
गहन प्यार की नाव पर,चले सिन्धु के पार।
6
तेरे दुख में जागते,कटती जाती रात।

तपता माथा चूमते,हुआ अचानक प्रात।।
7
कुछ मैंने माँगा नहीं,बस दो  बूँदें प्यार।
बदले में दे दो मुझे, अपने दुख का भार।।
8
अपनों के आगे बही ,मन की सारी पीर।
हँसी खो गई भीड़ में,मन पर खिंची लकीर
9
झेलूँ सारी चोट मैं ,ना पहुँचाऊँ ठेस।
कितने भी संघर्ष हों, दूँ  नहीं तुम्हें क्लेश।
10
युगों- युगों तक भी रहे, अपना यह सम्बन्ध।
करें टूटकर प्यार हम, बस इतना अनुबन्ध।।