डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
1
नेता -
राजनीति के रंग मंच का
मँजा हुआ अभिनेता !
2
चुनाव -
एक ऐसा नाटक
जिसे अभिनेता नहीं
नेता खेलते हैं
मनोरंजन हमारा होता है
खर्च भी हमीं झेलते हैं !
3
कुर्सी -
चुनाव रूपी नाटक की नायिका
जिसके लिए नाटक से बाहर भी
संघर्ष होता है ,
आम दर्शक
पाँच वर्ष रोता है !
4
वोट-
हम कुछ यूँ
समझ पाए
दें तो भी पछताएँ
न दें तो भी पछताएँ !
5
कविता हमारी ,
सुलगते बारूद की
पहली चिंगारी !
-0-
(17-08-81 )
6
मेरा मन
आज तक
अनगिनत बंधनों में जिया है,
मैंने उन्हें तोड़ दिया है
लेकिन वे कहते हैं -
मैनें ठीक नहीं किया है
क्या आप भी ऐसा ही समझते हैं ?
यकीन मानिए
इन बंधनों में मेरे विचारों के पाँव
बार बार उलझते हैं |
(20-03-1985 )
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