मैं हूँ या नहीं- डॉ.महिमा श्रीवास्तव
रात की खामोशी
चाँद से झरती
भूरी टहनियों पर
धूसर -सी चाँदनी
पहाड़ों की ढलानों
पर टिमटिमाती
मद्धिम सी रोशनियाँ
झील के किनारे
घनेरे सायों में
महकती हवाओं- संग
खोई सी विचरती
यूँ ही एकाकी
अनुमान लगाती
तुम्हारे ख्यालों में
मैं हूँ या नहीं
इस रात के
तिलस्मी अँधेरे ने
कुछ याद तुम्हें
दिलाया कि नहीं
तुम्हारे जागते हुए
देखे ख्वाबों में
मैं हूँ या नहीं।
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2-रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'
1
शाम ने ढूँढे
गीत गौरैया के भी
हो गए गूँगे
2
सरसों-खेत
पहने पीले वस्त्र
खिलखिलाते
3
मुँडेर पर
भोर-बेला में नृत्य
करती पीहू
4
रात अँधेरी
स्मृति का एक दीप
टिमटिमाता
5
सन्ध्या- समय
यादों के पाखी लौटे
उर-वन में
6
हृदय-द्वार
खड़ी स्मृति बनके
पहरेदार
7
खोल दो गाँठें
ह्रदय की हे प्रिय!
चुप्पियाँ तोड़ो
8
तुम न बुनो
ख्वाबों का ताना-बाना,
टूट जाएगा
9
रश्मि-लहरें
सिन्धु की गोद आके
सूरज बैठा
10
पा रवि-स्पर्श
धरा-भाल दमके
ज्यों स्वर्ण- ताल
11
सूर्य ज्यों झाँका
खिला धरा का रूप
स्वर्णिम आभा
12
होते ही साँझ
आ छिपा सिन्धु-गोद
सूर्य-बालक
13
सूर्य-बालक
पर्वतों -संग खेले
आँख-मिचौली
14
पर्वत रोते
सर से साया छिना
कटे चिनार
15
पुष्प से प्रेम
नभ से आई ओस
देने चुंबन
16
पुष्प की पीड़ा
डाल पर था खिला
तोड़ क्या मिला ?
20
प्रेम-बन्धन
टूटे न रखना ध्यान
ये अरमान
21
ओस-चुंबन
डाली से लिपटते
पुष्प लजाते
22
मन वीरान
क्या रेत से रिश्ते थे
जो ढह गए ?
23
व्यर्थ ही अड़ा
पाषाण वो, रे मन
तू कच्चा घड़ा
24
मन के घाव
ज्यों भरने को आते
कुरेदे जाते
25
धुँए के छल्ले
चाय-प्याला छुड़ाए
शीत-फंद से
26
छोड़ो लिहाफ़
चाय चुस्की लगाएँ
शीत भगाएँ
27
खौलती चाय
हुआ गर्म पारा है
शीत हारा है
28
सुनो प्यारी माँ
बना दो चाय पी लूँ
घूँट अमृत
29
ज्यों नन्ही परी
समय-अंक बैठी
है जनवरी
30
पहला मास
जनवरी ले आई
जीवन आस
31
रूप-किरण
तू आया लगा घर
जगमगाने
32
वसंत ऋतु
पहन पीत वस्त्र
सज गई भू
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कविता