पथ के साथी

Friday, June 15, 2018

828-मधु की आस


1-मधु की आस
डॉ.कविता भट्ट
अधर छूकर भी कंठ न कभी सींच सका,
उसी प्याले से मुझे मधु की आस रही
वो मुझमें खोजता रहा हर पल देवी,
मुझे उसमें बस इंसाँ की तलाश रही
मेरे भीतर रहकर भी जो साथ न था
मेरी धड़कन उसी के आस -पास रही
मुस्कुराने के सौ बहाने दुनिया में
फिर भी नम हुई आँखें , मैं उदास रही

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2- ज़िन्दगी 
   प्रियंका गुप्ता 

ज़िन्दगी
कोई ख़त नहीं होती
जिसे 
किसी एक के नाम लिखा जाए
ज़िन्दगी तो इक किताब है
अनगिनत पन्नों वाली
बस पलटते जाना; 
जब लगे
कहानी ख़त्म है
जोड़ देना उसमें
कुछ नए सफ़े
हर्फ़-- हर्फ़
लफ्ज़ -- लफ्ज़
बढ़ती जाती है कहानी
नए नए पात्रों के साथ;
सुनो!
ज़िन्दगी को बस पढ़ते जाना
जब तक कि
कहानी अपने अंजाम तक न पहुँचे ।
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 (सभी चित्र गूगल से साभार )