पथ के साथी

Monday, August 29, 2022

1236_बुद्धिजीवी


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

 

गुलामों की ज़िन्दगी जीने  वाले

अपमान को चुपचाप पीने वाले

 अवसर की पूँछ पकड़कर

बटोरकर सबके हिस्से का सम्मान

सजा रहे अपनी दुकान

माँग-माँगकर भीख

भर लेते अपनी झोली,

जिनकी नैतिकता को

लकवा मार गया

साफ़गोई स्वर्ग सिधार गई

बुद्धि को सुविधाएँ चर गईं

जेब नोटों से भर गई

आत्मा घुटकर मर गई;

जो अंधकार को बुलाते रहे

उजालों को कब्र में सुलाते रहे

सरेआम व्यवस्था को

पेड़ से लटकाकर

कोड़े लगाते रहे-

ऐसे लोग बुद्धिजीवी कहलाते रहे।

-0-रचनाकाल 20-2-82(किशोर प्रभात, अप्रैल 1984)