[जनक
छन्द दोहे के प्रथम चरण की तेरह मात्राओं की
लय के वैज्ञानिक ऽ ऽ ऽ, ऽ, ऽI ऽ विभाजन पर आधारित ‘सम मात्रिक छन्द’ है, अर्थात् जनक
छन्द के तीनों चरणों में 13-13-13 मात्राएँ होती हैं। एक गुरु ऽ के स्थान पर दो लघु
I I का प्रयोग(ऽ या II) किया जा सकता है। पहले और तीसरे चरण तुकान्त होते हैं। तीनों
चरण भी तुकान्त हों तो कोई दोष नहीं। अन्त में लघु-गुरु( I ऽ) की अनिवार्यता है।-डॉ
ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’]
जनक छंद
उमेश महादोषी
1.
बोल जमूरे! बोल ना!
दिखला कोई खेल तू
जीवन में रस घोल ना!
2.
तू नदिया की धार-सी।
मैं पत्थर-सा बह रहा
तू कल-कल करताल-सी।
3.
राजाजी क्यों ठंड में।
आए आज
गली-गली
हार गए-से
जंग में!
4.
साथ-साथ तेरे बहा।
तू तो गंगाजल बना
पत्थर मैं पत्थर रहा!
5.
पुष्पों में भी आग है।
और आग में बस रहा
देवों का अनुराग है।
6.
डाँट रहा सूरज उसे।
शीत लहर काँपे खड़ी
देख-देख धरती हँसे।
7.
कैसी है ये वेदना!
आँखों में आँसू नहीं,
ना ही तन में चेतना।
8.
संघर्ष यह थमे नहीं।
अन्तस में जो जल चुकी,
वो ज्योति अब बुझे नहीं।
9.
सर्पीली पगडंडियाँ।
हरियाते अरु खेत वे,
निगल गईं ये मंडियाँ।
10.
जब-जब उफनी है नदी।
जल में घुल बहती हुई,
पर्वत की पीड़ा मिली।
11.
प्रश्न बड़े बेताल के।
उत्तर देता है समय
सोच-समझ समकाल के।
12.
बँटा देश, जीवन बँटा।
देख जमूरे! देख ना!
बँटी बँटी है हर छटा।
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