पथ के साथी

Saturday, March 19, 2022

1194-सुख-दुख

प्रीति अग्रवाल

 दुःख में, जाने ऐसा क्या है

एक बार की अनुभूति भी
बरसों तक साथ रहती है
उसी शिद्दत से बार- बार,

हर बार मिलती है...


सुख में वो बात नहीं...
उसकी यादें
धुँधली हो जाती हैं
बिसरी अनूभूति पाने की धुन
फिर सवार हो जाती है
दर -दर घुमाती हैं
होड़ लगवाती
फिर भी
उस भूले सुख को
दोहरा नहीं पाती है...

कैसी विडंबना है,
दुख कोई नहीं चाहता
पर वो चाहे कितना ही पुराना हो,
साथ निभाता है
जब भी याद आता है
उसी गुज़रे दौर में ले जाता है,
सारी बारीकियाँ
एक बार फिर दोहराता है।

सुख, सब चाहते है
पर, वो चाहे
कितना ही नया क्यों न हो
असन्तुष्ट ही रखता है
'बस, एक बार और '
इस अनबूझ, अतृप्त चाह में
दौड़ाए रखता है...

कहीं ऐसा तो नहीं
दुख, चिरकालिक है
स्थायी है,
सुख, क्षणभंगुर है
अस्थायी है...?

आखिर कुछ तो कारण है
कि दुख याद रहता है
सुख भूल जाता है.... !