पथ के साथी

Friday, May 5, 2023

1321-क्षणिकाएँ

 रश्मि विभा त्रिपाठी


 
1

मेरे हिस्से में

आगे चलकरके

जरूर

थोड़े-बहुत पैसे निकलेंगे

तुम देखना

तब

कहाँ- कहाँ से

रिश्ते

कैसे- कैसे निकलेंगे।

2

वक्त की आँधी से

हम डर गए

उसी में

सारे रिश्ते बिखर गए

रिश्तों में

बढ़ती खाइयाँ हैं

जिधर देखो उधर

तनहाइयाँ हैं।

3

अभी क्या पता चलेगा

लिबास के ऊपर लिबास है

वक्त की आँधी में जो बचेगा

मेरा वही खास है

4

मैंने उससे मुहब्बत की

डोर बाँधी,

मेरा हाथ झटक गया

जब आई आँधी।

5

अकेली औरतो !

तुम नहीं हो सिर्फ

शाख से टूटे हुए पत्ते- सी

बदनीयत से

कोई हाथ बढ़ाए तो

बनो मधुमक्खी के छत्ते- सी।

6

कभी तो काश!

ऐसा रब करे,

आदमी

औरत का अदब करे।

7

तुम पूछते हो

कि हम क्यों नहीं होते

किसी शख़्स से मुख़ातिब

तो सुन लो!

मुलाक़ातों में होना चाहिए

एहतराम वाजिब।

8

जहाँ रहता था,

उजाड़कर वही दिल,

तू बन गया खुद ही

अपना कातिल!

9

उसे मैं क्यों चाहूँ

जिसे अपने काम से काम है,

वो कमबख़्त क्या जाने

मुहब्बत किस बला का नाम है?

10

इत्मीनान से पढ़ना

मेरी ज़िन्दगी की किताब का

पन्ना -दर- पन्ना,

इनमें

तुम्हारे ख़्वाब हैं,

तुम्हारी ख़्वाहिशें हैं और तुम्हारी है तमन्ना।

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