जलते सवाल
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
ट्रेन जलाई जा रही है
यह समझने की बात है-
क्या यह लालू जी की भैंस है ;
जिसने ग़लती से आपका खेत
चर लिया था या
इस मरखनी भैंस ने
किसी के पूत को
सींगों पर धर लिया था ?
चक्का जाम है-
क्या ये रास्ते
किसी गलत मंज़िल की ओर जा रहे हैं
या किसी चलने वाले को सता रहे हैं
ये रास्ते किसी के जूते की कील हैं ?
जो पैरों में गड़ रहे हैं
या किसी के माथे पर कलंक का टीका
जड़ रहे हैं ?
राह चलते लोग ,
जिन्हें हम जानते तक नहीं
उनको मार दे रहे हैं
ये दूकाने -जिन पर लोग
घर का चूल्हा जलाने के लिए बैठे है-
हमारे दुश्मन कैसे बन गए?
हम आज तक नहीं समझ पा रहे हैं .
'पंजाब ,सिन्ध ,गुजरात ,मराठा
,द्रविड़ ,उत्कल ,बंग'
इतने साल गा कर भी
हम अर्थ नहीं समझ पा रहे हैं।
हम किस अँधेरी गुफ़ा में जा रहे हैं?
नहीं पता ।
मेरे घर मे लगे
शहीद भगतसिंह,सुभाष चन्द्र बोस
और शिवाजी के कैलेण्डर
मेरे गाँव-घर का पता पूछ रहे हैं-
सोच नहीं पा रहा हूँ
मैं क्या बताऊँ ?
जो आज़ादी के वक़्त देश मिला था
उसे ढूँढ्कर कहाँ से लाऊँ ?
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