दस नम्बरी दोहे
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
नेता ऐसा चाहिए, डाकू तक घबराय ।
धुआँधार भाषण करे ,ले सबको बहकाय ॥
कुर्सी मधु से सौ गुनी,मादकता अधिकाय ।
वा पीकर बौराय जग ,या पाकर बौराय ॥
कुर्सी जननी ,ज़िन्दगी,सबकी इस तक दौर ।
इसके बिन संसार में ,और कहाँ पर ठौर ॥
बधिक आज नेता बने ,भरे हज़ारों खोट ।
जिस वोट से विजय मिली ,देते उसको चोट ॥
काले ब्रजबिहारी को पूज रहा संसार ।
काले धन को जोड़कर क्यों घबराते यार ॥
नेता खड़ा बज़ार में,जोड़े दोनों हाथ ।
जेब हमारी जो भरे ,चले हमारे साथ॥
जन-सेवा के नाम की झोंकी ऐसी धूल ।
जनता झाँसे में फँसी, गई सभी कुछ भूल ।
जीवन कच्चा काँच है ,कर लो पक्का काम।
रिश्वत लेकर घर भरो,जपो हरि का नाम ॥
मिली छूट माँ –बाप से ,लूट मची दिन-रात ,
गाली देकर और को,खाओ खुद भी लात ॥