रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
गुलाब
के अधर खुलते हैं तो
तेरे
हृदय के खिलने का आभास होता है
मलय
पवन के संस्पर्श से
रन्ध्र
मत्त होने पर
अगुआ
तेरा हर श्वास होता है ।
मुझे
अपने चरणों की
धूल
बन जाने दे,
फूल
बनकर राह में
अपनी
बिछ जाने दे ।
मुझे
सुख है या कि दु:ख
हर्ष
है या विषाद
कुछ
कह नहीं सकता
तेरे
सृजन पर कोई उँगली उठाए
करे
विवाद , बिना बात
मैं
सह नहीं सकता ।
तेरी
प्रत्येक भेंट की मैंने
प्राण
से स्वीकार
सोच
भी नहीं सकता कि
तुझमें
है कोई विकार ।
आँसू
हो या कोई गीत
सम्पत्ति
हो या कोई विपत्ति
प्रियतम!
तेरी किसी भेंट को
कभी
लौटा नहीं सकता
आकर
तेरे पगतल में
किसी
दूसरे द्वारे जा नहीं सकता ।
(रचनाकाल;27-4-74)