पथ के साथी

Thursday, August 25, 2016

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सुनीता काम्बोज

तेरी प्यास मुझको तेरी आरजू
इधर तू ही तू है, उधर तू ही तू

मेरे श्याम सुंदर मेरे साँवरे
ये नैना तुम्हारें लिए बावरे
मुझे हर घड़ी है तेरी जुस्तजू
इधर...

ये चाहत है दिल की कभी बात हो
तुम्हारी हमारी मुलाकात हो
कभी तो मिलो और करो गुफ्तगू
इधर ....
निराशा में आशा कन्हैया बने
सुनीता सदा वो खेवैया बने
बचाते रहे तुम सदा आबरू

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1-सुन लो कान्हा बात हमारी- योगेन्द्र नाथ शर्मा अरुण
     
हे नटनागर,कृष्ण,कन्हैया,रास रचैया,गोवर्धन धारी!
हे मन मोहन,राधा के प्रिय,हे मुरलीधर, श्यामविहारी!!
सारे जग के पालक हो तुम, तुम्ही सभी कष्टों के हर्ता,
फिरसे आओ यहाँ प्रभु तुम,सुनलो कान्हा बात हमारी!
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2- ओ कन्हैया !
गिरीश पंकज

पता नहीं किस नंदनवन में ,
भ्रमण कर रहे किसन-कन्हैया।
लेकर के अवतार प्रभु तुम,
आज बचा लो अपनी गैया।।

बढ़ते जाते असुर यहाँ पर,
देवों का हो गया पलायन।
'गीता' को सब भूल गए हैं ,
स्वार्थ का इकतरफा गायन।
कंस रूप धर कर के नाना,
करता मानो ता-ता- थैया।।

मुरली की धुन सुनकर तेरी,
गऊ माता इठलाती थी।
चारा चरती थी जंगल में,
और सुखी हो जाती थी।
आज कहाँ चारा-सानी अब ,
कचरा किस्मत में है भैया।

आ जाओ अब कान्हा मेरे,
'यमुना' का उद्धार करो।
एक नहीं अब कंस हजारों
वध करके उपकार करो।
गोकुल जैसा देश बना दो,
कहती है तुझसे हर मैया।
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3-कुण्डलिया-अनिता ललित

भाई है तेरी शरण, सुन लो आज पुकार
मुझको पार उतारना, कान्हा मैं मँझधार
कान्हा मैं मँझधार, न तुम बिन जग में कोई
छेड़ो ऐसी तान, रहूँ मैं तुझमें खोई
मोर-मुकुट मुख सजे, चपल मुस्कान लुभाई
भूलूँ सुख-दुख सभी, निहारूँ छवि मनभाई !!
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2

जब-जब फैला है तमस, तब-तब किया उजास ।

अपनों का जमघट, मगर; हो इक तुम ही पास॥

हो इक तुम ही पास, न दूजा और सहारा ।

तुम ही हो पतवार, बही जब आँसू-धारा ॥

मन कलुषित की हार, नयन में नेह लबाबब ।

धडकन बनी तरंग, मगन कान्हा में दिल जब !!
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