पथ के साथी

Tuesday, October 25, 2022

1253-मैं अदृश्या.. सॉनेट

 अनिमा दास

 उज्ज्वल नक्षत्रों में लुप्त जीवन का एक अन्वेषण


करती रही मैं अर्धशतक आयु पर्यंत निरीक्षण

मंत्र ध्वनि-मंगल ध्वनि से गूँजता रहा.. शून्यमंडल

दिवा-निशि आत्म-क्रंदन स्तब्ध किया पुष्प दल।

 

"तमिस्र तमिस्र" कहा; किंतु नहीं लाया कभी प्रकाश

अपितु तमस की परिधि में समग्र स्वप्न हुए नाश

शून्य को घोर शून्य होते करता रहा वह प्रतीक्षा

किंतु कहा नहीं अमृत मुहूर्त की भी हो अन्वीक्षा।

 

आज का ज्योति पर्व..मुखर हुआ शताब्दी पश्चात्

रघुवीर का प्रत्यागमन..अथवा विश्वास का भूमिसात्

किंतु हुआ था पुरुष पुरुषोत्तम... वैदेही हुई थी रिक्त

किंतु ज्योतिर्मय है अयोध्या..अंतर्मन हुआ प्रेम-सिक्त।

 

न न... कोई प्रतिवाद अथवा नहीं है कोई परिवाद

मैं सदा रहूँगी अदृश्या किंतु मुझसे ही होगा शंखनाद।

-0-कटक, ओड़िशा