पथ के साथी

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Tuesday, October 18, 2016

679



1-शृंगार छंद
डॉ ज्योत्स्ना शर्मा

झूमती गाती आई भोर
दिवस लो होने लगा किशोर
थिरकते पुरवाई के पाँव
तृप्त हों तृष्णाओं के गाँव ।।

मिले जब मन से मन का मीत
मौन में मुखरित हो संगीत
अधर पर सजे मधुर मुस्कान
हुई फिर खुशियों से पहचान ।।

जले जब नयनों के दो दीप
लगी फिर मंज़िल बहुत समीप
अँधेरों ने भी मानी हार
किया है स्वप्नों का शृंगार ।।

थामकर हम हाथों में हाथ
चलेंगे जनम-जनम तक साथ
राह में मिलने तो हैं मोड़
कहीं मत जाना मुझको छोड़ ।।
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2-अनिता मण्डा

मैंने चाँद तारे लिखे
आसमान जगमगा उठा
मैंने सूरज लिखा
क़ायनात रोशन हो गई
मैंने फूल लिखा
हवा में ख़ुश्बू बिखर गई
मैंने तुम्हारी खुशियाँ लिखी
हर दिशा उल्लास से भर गई
मैंने खुद को लिखा तो
फिर क्यों मन में वेदना समा गई ?
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3- शिव डोयले

उसने सम्बन्धों को
इस तरह
भुला दिया 
जैसे
यात्रा के दौरान
नदी में सिक्का
डाल दिया 
-0-

Sunday, September 11, 2016

666



1-तेरी छुवन- डॉ योगेन्द्र नाथ शर्मा अरुण

तेरी छुवन
मादक लगती है
अमृत जैसी
तुमने कहा
हम तुम्हारे हैं
खुश हैं हम
आओ तो कभी
मन बुलाता तुम्हे
कभी तो सुनो
प्रतीक्षा करूँ?
बोलो तो कब तक?
जीवन कहाँ?
इंतज़ार है
उनके ही आने का
शायद आएँ
-0-
2-तुम से मिलना-नीति राठौर


तुमसे मिलना,तुमको पाना,
लगता प्रभात का आना है।
जीवन की तपती राहों में,
जैसे छाँव का मिल जाना है।

तूफान है ये विचारों का
आना और चले जाना है।
शीतल -सी मंद बयार है ये
जीवन जिससे महकाना है।

है कौन जन्म का रिश्ता ये,
मैंने जो तुमको पाया है?
ना जाने नियति ने क्योंकर,
हम दोनों को मिलवाया है।

मरुथल की तपती राहों का
संताप हर एक मिटाना है।
प्रेम के सागर-मंथन से प्रिय,
अमृत का रस छलकाना है।

पावन सच्चा प्रेम हमारा,
मैंने तो इतना ये जाना है।
बहते जीवन की धारा में,
ये हाथ थाम बढ जाना है।
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3-शिव डोयले

भोर मे सूरज की लाली
खिलते फूलों को चूमती
अल्हड़ तितली
डाल -डाल पर पक्षियों का कलरव
मंदिर की आरती
यह दुनिया सुबह की तरह
खूबसूरत क्यों नहीं होती
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