पथ के साथी

Wednesday, April 27, 2011

ताँका


रामेश्वर काम्बोज ’हिमांशु’
ताँका  जापानी काव्य की कई सौ साल पुरानी काव्य शैली है । इस शैली को नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी  के दौरान काफी प्रसिद्धि मिली। उस समय इसके विषय धार्मिक या दरबारी  हुआ करते थे । हाइकु का उद्भव इसी से हुआ । इसकी संरचना 5+7+5+7+7=31वर्णों की होती है।एक कवि प्रथम 5+7+5=17 भाग की रचना करता था तो दूसरा कवि दूसरे भाग  7+7 की  पूर्त्ति के साथ शृंखला को पूरी करता था फिर पूर्ववर्ती 7+7 को आधार बनाकर  अगली शृंखला में 5+7+5 यह क्रम चलता;फिर इसके आधार पर अगली शृंखला 7+7 की रचना होती थी । । इस काव्य शृंखला को रेंगा कहा जाता था । इस प्रकार की  शृंखला सूत्रबद्धता के कारण यह  संख्या 100 तक भी पहुँच जाती थी
1-बाँस का वन
बाँस का बन
चिर्-चिर् करता रहा
डूबता मन
ढक देते हैं शिला
सुग्रीव जैसे जन।
-0-
2-झील का जल
1
झील का जल
रातभर उन्मन
तट निर्जन
उगा  न आज चाँद
किनसे बातें करें!
2
हो गई भोर
सूरज पुजारी-सा
आया नहाने
झील है पुलकित
मिलन के बहाने
3
बोला कोकिल
तरु की डाल पर,
लाज तिरती
झुरमुटों के पाखी
चुहुलबाजी करें








4
हुए सिन्दूरी
लहरों के भी छोर
छलक गए
वे नयन निर्मल
झील के पल-पल
-0-



Thursday, April 21, 2011

है हमारी कामना !


रामेश्वर काम्बोज’हिमांशु’

है हमारी कामना
यही पावन भावना ।
दु:ख कभी न पास आएँ
अधर सदा मुसकुराएँ
खिल जाएँ सभी कलियाँ
महक उठे मन की गलियाँ
हृदय जब हो जाए दुर्बल
बन जाना तू ही सम्बल
       हाथ आकर थामना
है हमारी कामना ।
कौन अपना या पराया
मन कभी न जान पाया
यह मेरा वह भी मेरा
साँझ अपनी व सवेरा
बाँट दो दुख कम कर लो
सुख द्वारे पर यूँ धर लो
       सुखों से हो सामना
है हमारी कामना ।     
-0-

Sunday, April 17, 2011

तुम जो मिले


रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
1

मधुर मुस्कान
सराबोर कर दे
मन व प्राण

2
तरल नैन
भीगे सरल बैन
लौटा दें चैन
3
रिश्तों की डोर-
भावना से लिपटी
उजली भोर
4
मिलें ज्यों कल
लगे पहचाने-से
भाव निर्मल
5
तुमने जोड़ा
पावन हृदय का
रस निचोड़ा
6
आज का दिन-
ईश्वर ने दिया ज्यों
स्वर्ग का राज
7
वर्षों का तप
हुआ आज सफल
तुम जो मिले
8
साँसों का सच
आँखों में झाँक रहा
बनके गंगा

Sunday, April 10, 2011

बची है आस-


रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
तेरी दुआएँ
महसूसती मेरी
रक्त -शिराएँ
2
ओस की बूँद -
बरौनियों की नोक
उलझे आँसू
3
तुम्हारा मन
व्याकुल क्रौंच जैसा
करे क्रन्दन
4
बची है आस-
कभी न कभी तुम
आओगे पास
5


गए हो दूर

यादों का रात-दिन
जलता तूर1


6
तुम्हारी भेंट
रख ली सँजोकर
प्राण हों जैसे
7
सपना टूटा
हाथ जो गहा था
हमसे छूटा
8
सपने बाँटे-
जितने थे गुलाबी,
बचे हैं काँटे
9
फूल हैं झरे
सपने सब मरे
साँझ हो गई
-0-


1 -एक पर्वत जिस पर दिव्य प्रकाश देखकर हज़रत मूसा मूर्च्छित हो गए थे  ।






Thursday, April 7, 2011

जीत के आँसू ( टीम इण्डिया)


रोक न सके
सैलाब -से बहते
खुशी के आँसू                                 -रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'                                            

Saturday, April 2, 2011

मुक्तक



आज रिश्तों का हिसाब मत देखो
मैंने क्या लिखा ज़वाब मत देखो ।
हर वर्क पर है सिर्फ़  तेरा नाम ,
खोलकर दिल की क़िताब मत देखो॥
-0-
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’