भीकम सिंह
जिस-जिसके
जूते उठाए
मेरे पैरों के लिए
छोटे पड़े ।
आत्म-सम्मान पर
पुनर्विचार की शक्ति भी
क्षीण करते रहे वे
दिखा-दिखाकर मुझे
अतीत की जड़ें ।
मैं आरती का दीया
बन न पाया कभी
इसलिए मरियल झोंके सभी
हड़काते रहे मुझे
आँधी के पीछे होकर खड़े ।
आज सुख में
दु:ख भरे
स्मृतियों के पन्ने
पलटता जा रहा हूँ
यूँ ही बस पड़े-पड़े ।
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2-क्षणिकाएँ
1
बड़ी लाइल्म होती हैं
साजिशें
जिसे सहारा देती हैं
उसी को कर देती हैं
तबाह।
2
लहजों पर ना
कर लेना विश्वास
कुछ लहजे
बड़े माहिर होते हैं
झूठे किस्सों को भी
सच में बदल देने में।
3
लाख मारें टक्करें
लहरों को कहाँ
होता है नसीब किनारा
लौट कर जाना ही पड़ता है
समुंदर की पनाहों में।
4
कब से लगा है
पगला ज़माना
हवाओं को कैद करने में
कौन समझाए उन्हें
मुठ्ठियों से कहीं बड़ा होता है
हवाओं का कद।
5
बिना किसी सहारे के
एक-एक सीढ़ी चढ़ते हुए
दम फूलने का अहसास
और घुटनों की ऐंठन के बाद
ऊँचाइयाँ छूने का
अपना ही परम आन्नद होता है।
6
निराली होती है
आँसुओं की फ़ितरत
पलकों पे रहें तो
पानी के कतरे
गिर जाएँ तो
लगा देते हैं आग।
7
औरत को
विरासत में मिला होता है
झूठ बोलना
कितना सहज कर देते हैं
औरत के छोटे-छोटे झूठ
मैं ठीक हूँ, मुझे भूख नहीं,
आँख में कुछ गिर गया था इत्यादि।
8
राजा की
जयजयकार करने वाले
भूल जाते हैं कि वे
खो रहे हैं अपनी आज़ादी
और भीड़ को भीड़ से भिड़ाने का
दे रहे हैं राजा को बल।
9
भटकते फिसलते धसते
पाँवों को
चाहें यदि उबारना
तो कसकर थाम लें
एक दूजे का हाथ।
10
हवाओं सा होता है
माँ का साथ
चली जाए तो
घुटने लगता है दम।