1-डॉ.ज्योत्स्ना
शर्मा
1
अभिमंत्रित
मुग्ध-मुग्ध
मन
मगन
हो गई,
लो
आज धरती
गगन
हो गई ।
2
दूर
क्षितिज में
करता
वंदन
नभ
नित
साँझ-सकारे
प्रतिपूजन
में
धर
कर दीप धरा भी
मिलती
बाँह पसारे !
3
मौन
भावों के
जब
उन्होंने
अनुवाद
कर दिए,
किसी
ने भरा प्रेम
किसी
ने उनमें
आँसू
भर दिए।
4
तरंगायित
है
आज
वो
ऐसी
तरंगों से
भर
देगा जग को
प्यार
भरे रंगों से ।
-०-