पथ के साथी

Thursday, July 26, 2018

832


1-डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
1
अभिमंत्रित
मुग्ध-मुग्ध मन
मगन हो गई,
लो आज धरती
गगन हो गई ।
2
दूर क्षितिज में
करता वंदन
नभ नित
साँझ-सकारे
प्रतिपूजन में
धर कर दीप धरा भी
मिलती बाँह पसारे !
3
मौन भावों के
जब उन्होंने
अनुवाद कर दिए,
किसी ने भरा प्रेम
किसी ने उनमें
आँसू भर दिए।
4
तरंगायित है
आज वो
ऐसी तरंगों से
भर देगा जग को
प्यार भरे रंगों से 
-०-

Tuesday, July 24, 2018

831


कमबख्त़ पुराने दोस्त
पूर्वा शर्मा

यादों की सूखी फसल को
फिर से लहलहाता कर गए
कल कुछ कमबख्त़ पुराने दोस्त मिल गए
फिर जी गया मैं इस ज़िन्दगी को
वो कुछ हसीं पल याद दिला गए
कल कुछ कमबख्त़ पुराने दोस्त मिल गए

दिल की तंग गलियों में
वे कमबख्त़ फिर से समा गए
कल कुछ कमबख्त़ पुराने दोस्त मिल गए
मुस्कराहट कम ही नहीं होती
ऐसी दवा वे सभी मुझे दे गए
कल कुछ कमबख्त़ पुराने दोस्त मिल गए

न जाने कौन-सा अर्क, कौन-सा इत्र
वे शीशी भर उड़ेल गए  
कल कुछ कमबख्त़ पुराने दोस्त मिल गए
महकता रहा रातभर मैं
और सुबह उनके ख़्वाब महका गए
कल कुछ कमबख्त़ पुराने दोस्त मिल गए
कमबख्त़ पुराने दोस्त क्या मिले
मुझ कमबख्त़ को भी गुलज़ार कर गए
-0-

Thursday, July 19, 2018

830-कृष्णा वर्मा की कविताएँ


कृष्णा वर्मा 

1-तेरा जाना

किए जतन मन बहलाने को
मिलते  नहीं  बहाने
अधरों की हड़ताल देख कर
सिकुड़ गईं मुस्कानें।
मन का शहर रहा करता था
जगमग प्रीतम तुमसे
बिखरा गया सब टूट-टूट कर
चले गए तुम जब से।
चुहल मरा भटकी अठखेली
गुमसुम हुई अकेली
हँसता- खिलता जीवन पल में
बन गया एक पहेली।
सिमट गया मन तुझ यादों संग
हृदय कहाँ फैलाऊँ
कहो तुम्हारे बिन कैसे
विस्तार नया मैं पाऊँ।
 -0-
2-स्वप्न उनके ही फलें

काल के संग जो चले
आज उसको ही फले
रोशनी ना हो सकेगी
वर्तिका जो ना जले।

जो निगल लेते हैं संकट
धैर्य को धारण किए
लड़खड़ाएँ लाख लेकिन
वो कभी गिरते नहीं।

बूँद माथे पर टपकती है
उसी के स्वेद की
जिसने पहरों की मशक़्क़त
चिलचिलाती धूप में।

पार करना आ गया
कठिन राहों को जिसे
मंज़िलें बाहें पसारे
मुंतज़िर उसको मिलें।

शूल चुभने की ख़लिश को
जो नहीं करते बयां
चरण उनके चूमता है
एक दिन झुक कर जहाँ।
-0-

Wednesday, July 11, 2018

829


शारदा सैनी

मैं ढूँढू तुझको मेरे पिया,
कही नजर ना आवे गए कहाँ,
मेरा मनवा तरसै।
मेरी अँखियाँ बरसै।

तू मन से मुझको देख जरा ,
तेरे पिया यहीं, नहीं गए कहीं,
क्यूँ तेरा मनवा तरसै।
क्यूँ तेरी अँखियाँ बरसै।

बागों में जाकर ढूँढ लिया,
माली से मैंने पूछ लिया,
माली ने किया इंकार पिया,
हो मेरा मनवा तरसै।
हो मेरी अँखियाँ बरसै।

तालों पर जाकर ढूँढ लिया,
धोबी से मैंने पूछ लिया,
धोबी ने किया इंकार पिया,
हो मेरा मनवा तरसै।
मेरी अँखियाँ बरसै।

कुएँ पर जाकर ढूँढ लिया,
पनिहारी से भी पूछ लिया,
पनिहारी ने किया इंकार पिया,
हो मेरा मनवा तरसै।
मेरी अँखियाँ बरसै।

मंदिर में जाकर ढूँढ लिया
पुजारी से भी पूछ लिया
पुजारी ने किया इंकार पिया
हो मेरा मनवा तरसै
मेरी अँखियाँ बरसै

जब मिला नहीं कहीं तेरा पता
फिर खुद से ही मैंने पूछ लिया
मन मंदिर भीतर मिले पिया
हो मेरा मनवा तरसै।
मेरी अँखियाँ बरसै।