पथ के साथी

Wednesday, February 22, 2023

1292

 

  1-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

घिरँधेरा घन,हरें पतवार कैसे छोड़ दूँ।

जीना अभी, करना बहुत संसार कैसे छोड़ दूँ।

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2-परमजीत कौर 'रीत'

 

ग़ज़ल -1

अँधेरों की फ़ितरत का क्या कीजिए

चिराग़ों का  क़द ही बढ़ा लीजिए 

 

इसी में सुकूँ ज़िन्दगी का असल 

दुआ लीजिए और दुआ दीजिए

 

ये ही नफ़रतों का करेंगी इलाज़ 

जड़ी-बूटियाँ प्यार की बीजिए

 

समंदर सी रख ली है ग़र तिश्नगी़

न कम होगी, सौ-सौ नदी पीजिए 

 

खुदा ! ये दुआ है करूँ बंदगी

भले मुझको कम ज़िन्दगी दीजिए

 

ग़ज़ल -2

कहाँ कोई किसी से कम यहाँ था

ग़र इक तालाब तो दूजा कुआँ था 

 

गिरा पत्ता तो हावी हैं हवाएँ 

शज़र के साथ कब वह नातवाँ था

 

उन्हीं रिश्तों को परखा दूरियों ने 

वो जिनका नाम ही नज़दीकियाँ था 

 

मुझे थी पास होने की हिदायत

उन्हें हर बार लेना इम्तिहाँ था

 

नहीं था तर्क-ए-त'अल्लुक़ ये सच, पर

पलटकर 'रीत' देखा भी कहाँ था

 

ग़ज़ल -3

दिल से मिलें ग़र लोग, याराना बनता है

तार जुड़ें बेमेल, तमाशा बनता है

 

पेट काटकर तिनका-तिनका जोड़ें तब

सिर ढकने को एक ठिकाना बनता है 

 

 पंछी, पत्ते, फूल साथ छोड़ देते जब

बूढ़े पेड़ का मौन सहारा बनता है

 

वक्त के एक इशारे पर मंज़र बदलें

खुशी की आँखों में ग़म खारा बनता है

 

कुछ तो बात है हममें, सब यह कहते हैं

यूँ ही नहीं हर कोई दीवाना बनता है 

 

धुंध भले दीवार बने रस्ता रोके

फिर भी सूरज का तो आना, बनता है 

-परमजीत कौर 'रीत'

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1291

 जलीय भाव मन के 

अनिमा दास

 


स्वार्थ की अग्नि में जल गया नभांचल

उर्वि हुई शुष्क.. मन-कूप हुआ मरुथल

पल्लवों का क्रंदन..पुष्पों का हृद-मंथन

केवल अश्रु में है आर्द्रता..जग वह्नि-वन।

 

आ! दे जा जल,भर दे आ,सर- सरिता 

सजीव के अधरों में खिल जाए स्मिता 

यह तपन...लोभ की यह असह्य क्रीड़ा

नित्य विष -सी घुल जाती असंख्य पीड़ा।

 

जिसे कहा जीवन.. उसे किया नाशित

जिसे कहा अमृत.. उसे किया दूषित 

रेमानव! क्या सृष्ट कर पाएगा सागर?

क्या तुझसे जन्म ले पाएगा एक अंबर ?

 

त्रास मेरा हो रहा...दिगंतर में घनीभूत

बन जल-धारा बरसेगी..व्यथा अनाहूत।

-0-कटक, ओड़िशा