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अधर पर मुस्कान दिल में डर लिये
लोग ऐसे ही मिले पत्थर लिये।
आँधियाँ बरसात या कि बर्फ़ हो
सो गये फुटपाथ पर ही घर लिये।
धमकियों से क्यों डराते हो हमें
घूमते हम सर हथेली पर लिये।
मिल सका कुछ को नहीं दो बूँद जल
और कुछ प्यासे रहे सागर लिये ।
हार पहनाकर जिन्हें हम खुश हुए
वे खड़े हैं सामने पत्थर लिये ।
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