पथ के साथी

Sunday, June 30, 2019

912


डॉ. सुरंगमा यादव
1- वर्तमान में आग लगाकर 

एक अपने के ठुकराने से 
रूठा जग से नहीं जाता है 
वो यदि अपना होता
ठेस पे ठेस लगाकर
उपहास न करता
अपना बनकर छलने वाला
शत्रु से बढकर घातक होता है 
टूट गया जो प्रेम का नाता
सबसे नेह नहीं तोड़ा जाता है 
कुछ अपनी,कुछ उसकी मर्जी 
सदा स्वीकार नहीं होती है अर्जी 
मनचाहा सब कुछ दुनिया में 
नहीं सदा ही मिल पाता है 
दुःख साधन को पकड़े रहने से
हारिल बनकर स्वयं बँधा बंधन में 
एक सुख के न मिल पाने से
रोना-गाना अधिक नहीं भाता है 
दिखीं दरारें, भरना संभव
सीलन की ;पर राह खोजना दुष्कर 
सीली लकड़ी सुलग-सुलगकर
हानि आँख की करती
सीले ईंधन के कारण
चूल्हा नहीं तोड़ा जाता है 
असरदार हो औषधि कितनी
घाव हमेशा 
धीरे-धीरे ही भरता है 
एक घाव की खातिर 
अंग नहीं काटा जाता है 
वर्तमान में आग लगाकर 
भविष्य का उपवन
खिला नहीं करता है
-0-
2- आया कैसा दौर

काँटों की रंजिश में 
कब तक कलियाँ 
छलनी होंगी 
भँवरों की मनमानी को
कहो कहाँ तक 
सहन करेंगी
सोच में डूबी
बगिया सारी
कल होगी किसकी बारी
मौन हुई नन्हीं किलकारी
छोड़ गई मन में चिंगारी 
मैं तो जीवन हारी
अब न आए किसी की बारी
माली की कैसी लाचारी
ममता सहमी
किस दर जाएँ 
कैसे पाएँ फिर से उसको
कैसे न्याय दिलाए
नहीं सूझता ठौर
आया कैसा दौर
गिद्ध दृष्टि घात लगाए
घूमें गली-गली
कैसे पनपे हाय!लली
देर न कर अब
उठना होगा 
वरना हाथों को मलना होगा 
मेरी-तेरी भूल,
खड़े हो साथ
-0-


Tuesday, June 25, 2019

892-अक्षर नहीं मरा करते हैं


[1193 में बख़्तियार खिलज़ी ने भारतीय  ज्ञान के प्रति  ईर्ष्यावश नालन्दा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में आग लगवा दी। विश्व की उस समय की इस सर्वोच्च संस्था में  सँजोए सभी महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ जलकर ख़ाक़ हो गए। यह आग कई महीनों तक जलती रही। विद्वान् शिक्षकों  की हत्या कर दी गई। इस घटना से मन में कुछ भाव आए, जो आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत हैं।]
 रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

चाहे ख़िलजी लाखों आएँ
नालन्दा हर बार जलाएँ
धू -धू करके जलें रात- दिन
अक्षर नहीं जला करते हैं।

विलीन हुए  राजा और रानी
सिंहासन  के उखड़े पाए
मुकुट हज़ारों मिले धूल में
बचा न कोई अश्क बहाए।

ग्रन्थ फाड़कर आग लगाकर
बोलो तुम क्या क्या पाओगे
आग लगाकर  तुम खुशियों में
खुद भी इक  दिन जल जाओगे।

नफरत बोकर फूल खिलाना
बिन नौका  सागर तर जाना
कभी नहीं होता यह जग में
औरों के घर बार जलाना।

जिसने जीवन दान दिया हो
उसे मौत की नींद सुलाना
जिन ग्रन्थों में जीवन धारा
बहुत पाप है उन्हें मिटाना।

ख़िलजी तो हर युग में आते
इस धरती पर ख़ून बहाते
मन में बसा हुआ नालन्दा
लाख मिटाओ मिटा न पाते।

आखर -आखर जल जाने से
ये शब्द नहीं  मिट पाते हैं
भाव सरस बनकर वे मन में
अंकुर बनकर उग जाते हैं
जीवन जिनका है परहित में
कब  मरण से डरा करते हैं।
मरना है इस जग में सबको
अक्षर नहीं मरा करते हैं।

-0-

Saturday, June 22, 2019

911

ग़ज़ल
रमेशराज

प्यार के, इकरार के अंदाज सारे खो गए
वो इशारे, रंग सारे, गीत प्यारे खो गए।

ज़िन्दगी से, हर खुशी से, रोशनी से, दूर हम
इस सफर में, अब भँवर में, सब किनारे खो गए।

आप आए, मुस्कराए, खिलखिलाए, क्यों नहीं?
नित मिलन के, अब नयन के चाँद-तारे खो गए।

ज़िन्दगी-भर एक जलधर-सी इधर रहती खुशी
पर ग़मों में, इन तमों में सुख हमारे खो गए।

फूल खिलता, दिन निकलता, दर्द ढलता अब नहीं
हसरतों से, अब ख़तों से सब नज़ारे खो गए।

तीर दे, कुछ पीर दे, नित घाव की तासीर दे
पाँव को जंजीर दे, मन के सहारे खो गए।

Sunday, June 16, 2019

910-पितृ-दिवस


 1- शशि पाधा  
याद आता है
1
गिने थे अनगिन तारे 
गोदी में बैठे तुम्हारे 
हर रात ढूँढा ध्रुव तारा 
तुम्हारी तर्जनी के सहारे 
तुमसे ही जाने थे 
दिशाओं के नाम 
फूलों के रंग, पर्वत,पहाड़ 
नदियाँ,सागर देश गुमनाम 
पास थी तुम्हारे 
जादू की छड़ी 
जो हल कर देती थी 
प्रश्न सारे। 
2
याद आता है 
पिता का चश्मा 
जिसे लगाने की 
कितनी ज़िद्द थी मेरी 
और तुम 
केवल मुस्कुराके कहते 
अभी उम्र नहीं है तेरी
अब रोज़ लगाती हूँ चश्मा 
लगता है
आस पास ही हो आप
और---
 चश्मा धुँधला हो जाता है
3
याद आता है 
हर शाम पिता से अधिक 
उनके झोले की प्रतीक्षा करना 
उसी में से पूरे होते थे 
सारे सपने, मनोकामना 
तुमने कभी नहीं दुखाया
बालमन 
उसमें थी निधि स्नेह की 
त्याग का अपरिमित धन। 
4
कथनी से करनी बड़ी 
तुम्हारी सीख
है धरोहर 
पीढ़ी -दर- पीढ़ी 
दीप स्तम्भ सी 
पथ प्रदर्शक। 
5
मैंने न छुआ आकाश कभी 
और न मापी सागर की गहराई 
न कभी समेटी बरगद की छाया 
न देखी हिमालय की ऊँचाई 
मैंने तो बस अपने पिता में
इन सब को समाहित होते देखा है। 
-0-

2-मुकेश बाला
आज याद आया

आज हर संतान में
श्रवण कुमार समाया है
अवहेलना का शिकार
पिता आज याद आया है
उसने तो कन्धों पर लादा था
हमने स्टेटस यान में बिठाया है
तीर्थ यात्रा हुई पुरानी
फेसबुक का भ्रमण कराया है
सबके ट्विटर ब्लॉग पर
आज तो बस बापू ही छाया है
पाश्चात्य का चढ़े न रंग
भारतीयता को अपनाया है
फादर्स डे को भुलाकर
हमने पितृ-दिवस मनाया है
परम्परा से कटकर ही तो
ये आधुनिक युग कहलाया है
-0-

Friday, June 14, 2019

909



1- सत्या शर्मा 'कीर्ति '
पिता की कुछ बातें
1.
पता है पापा
बहुत कुछ कहना है आपसे
कई बार चाहा कह दूँ
वो सारी की सारी बातें
जो कह न पाई
रह गयी दिल में
कुछ संकोच बस
पर अब लगता है
कहीं देर न हो जा...
2.
पिता
जिसे बाँध नहीं सकती शब्दों में
अर्थहीन हो जाते हैं
सारे के सारे शब्द
और झुक जाते हैं
छूने
पिता के पैरों को...
3..
पापा
अब नहीं करते विरोध
किसी भी बात का
डाँटते भी नहीं
होने देते हैं
सब कुछ यथावत्
शायद डरते हैं
कि कहीं न देखना पड़े
अपने स्वाभिमान को
टूट कर बिखरते हुए....
--0-
ईमेल - satyaranchi732@gmail.com

-0-
कृष्णा वर्मा

1
तड़पें या मरें मछलियाँ
उनकी बला से
वह तो सतत घोलते रहे
ज़हर पानी में।

बाती बने न सूत ही
बस बन रहे कपास
बाती बन जीते यदि
करते घना उजास।
2
हवाओं को लगी है
बुरी लत जीतने की
हमारी ज़िद्द भी
जलाए रखती है
उम्मीदों की लौ।
3
अक्सर
खोटे लोग ही दे जाते हैं
खरे सबक।
4
ओहदा
पीर की मज़ार होता है।
आरम्भ वही करें
जिसका अंत
अर्थपूर्ण हो।
5
अहम का तूफ़ान
ले डूबता है
हस्ती की कश्ती।
 6
आज फितरत में पले
ईमानदारी
तो अपना दुश्मन
आप हो जाता है इंसान।
7
ठंडे होने लगें रिश्ते
तो लगा दो आग
ग़लतफहमियों को।
8
हथेली पर समेट कर
पानी की बूँद
पत्ता सहेजता है
बरसाती सफ़र की
गीली स्मृतियाँ।
9
मेरी ज़िद्द न
टला तुम्हारा अहं
हारा प्रणय
रफ़्ता-रफ़्ता हो गए
ज़ख़्मी ख़्वाब हमारे।
10
नम आँखों में पसरे
एकांत का सघन मौन
जन्मता है
जज़्बाती कविताएँ।
11
रंग का नहीं
गुण का होता है जलाल
क्या ख़ूब लिखती है
रोशनाई की कलौंस
रौशनी के तमाम किस्से।
12
मिल जाती जो मोहलत
पतवार उठाने की
डूबती नहीं
लड़ लेती मेरी कश्ती
सिरफिरी हवाओं से।
-0-

Tuesday, June 11, 2019

908-ख़ौफ़ ज़रूरी है



भावना सक्सैना

प्रेम हो, दोस्ती हो,
भाईचारा रहे,
लेकिन इस जहाँ में
ख़ौफ़ भी ज़रूरी है।
आदमी को आता नहीं
शऊर बिना ख़ौफ़ के,
आदमी इंसान रहे 
इसलिए ख़ौफ़ ज़रूरी है।
कानून को चाहिए 
कि खाल खिंचवा ले
सरेआम, गुनहगारों की,
बालों से लटकाए
नाखून खिंचवा ले
सर कलम हों चौराहों पर
या मिले फाँसी वहीं
अंजाम हो कुछ भी मगर
ख़ौफ़ जरूरी है
ख़ौफ़ तो ज़रूरी है।
मोहब्बत में अक्सर
हो जाता है धोखा
सोचे सौ बार कोई
जहालत से पहले
न टूटे भरोसा 
ईमान रहे कायम
बस इसीलिए जहाँ मे
खौफ़ ज़रूरी है


Sunday, June 9, 2019

907-रंग न उतरे प्रीत का



डॉ.पूर्णिमा राय ,पंजाब 

कान्हा तेरी प्रीत ही है जीवन आधार
रंग भरो बस प्रेम का, क्षणभंगुर संसार ।।

कमलनयन के प्रेम में, राधा है बेचैन
मीरां बनकर घूमती,चाहे हर पल प्यार।।

बाट जोहते नैन हैं ,हाल हुआ बेहाल
दर्शन दे दो साँवरे ,लीला अपरम्पार।।

स्वार्थ -भरी जीवन डगर ,मोह लोभ की धूप
मन सुमिरन औ' कर्म से श्याम मिले साकार।।

उदित सूर्य मेंपूर्णिमामुख पर है मुस्कान 
रंग न उतरे प्रीत का, जीवन -नैया पार।।

Thursday, June 6, 2019

906-विश्व पर्यावरण दिवस


 चिन्तन –मंथन 

       शशि पाधा
    
गाँव- गाँव अब शहर हुए
दरिया सिमटे नहर हुए
 सागर- चिन्ता घोर
 न जाने क्या होगा

खुली छत,तारों से बातें
घुली चाँदनी,झिलमिल रातें
 रह गई दूर  की दौड़
 न जाने क्या होगा !

सूरज का रथ स्वर्ण- जड़ा
दूर सड़क के मोड़ खड़ा
खिड़की बैठी भोर
न जाने क्या होगा !

गोधूलि अब धूल-भरी
छाया :रोहित  काम्बोज 
बगिया क्यारी शूल -भरी
उड़ता फिरता शोर
 न जाने क्या होगा !!

जंगल सब बियाबान हुए
पंछी सब परेशान हुए
कहाँ पे नाचें मोर 
न जाने क्या होगा !!

ताल तलैया सूखे-से 
बरगद बाबा रूखे- से 
भूखे -प्यासे ढोर

न जाने क्या होगा !!