पथ के साथी

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Saturday, October 1, 2022

1249

 भीकम सिंह 

मन

 

मन बेईमान 

एक सफर पर नही चलता 

ढूँढता, रास्ते नित नये   

 

पहलों से ऊबकर 

करने को कुछ नया 

देखे  , अखब़ार की तहें ।

 

भरा रहे वादों से 

एकत्र करके यादों के 

गड्ढों में, बहता रहे 

 

गुमनामी में जीता 

लेकिन अभिलाषा यही 

बस , नाम चलता रहे 

 

मन बेईमान 

भले हो खामोश 

मन मेंकिन्तु कहता रहे   

-0-

2-राधे

1

हँसना उतना ज्यादा पड़ता है, ज़ख्म जितना गहरा होता है

जिंदा है बस इसी आस में  कि हर शाम के बाद सवेरा होता है

 

नकाब उतार भी दे फिर भी, सच सामने नहीं आता जहाँ में

क्या अपना,पराया, हर चेहरे के पीछे एक चेहरा होता है

 

वो गलत होकर भी सही है, मगर हम सही होकर भी हैं गलत 

क्या पूछ रहे हो, कैसे, अरे यहाँ कसूर तो बस मेरा होता है

 

क्या दुश्मन, क्या दोस्त, क्या अपना, क्या पराया सभी हैं निर्दोष

क्या खूब लूटा है जमकर हमको, वक्त भी गजब लुटेरा होता है

-0-

2-

1

चेहरे पर खामोशी दिल में बवाल था

झूठा ही सही पर मेरा यार कमाल था

घंटों नहीं बिकी वफ़ा इश्क बाज़ार में

उधर बेवफाई में जबरदस्त उछाल था

3

देखना तो था मगर उससे ख्वाब कौन माँगे

सवाल बहुत हैं मगर उससे जवाब कौन माँगे

कहा सब ने पूछ लूँ क्यों छोड़ा बीच सफर में

मगर समंदर से दरिया का हिसाब कौन माँगे

-0-

4-वक्त और वो

 

ये बुरा वक्त भी तो वक्त ही है सुधर जाएगा

लौट आएगा वो भी, जाने दो, किधर जाएगा

जितना मर्जी घूम ले वो मंजिल दर मंजिल मगर

फकत बेचैन ही रहेगा हर दम जिधर जाएगा

सभी राह बंद होगी तो वापस लौट चल देगा

आ पास मेरे, बाहों में, मोती बिखर जाएगा

अगर मिल भी जाए मंजिल उसे बीच रास्ते में

तो फिर कौन- सा, बिना उसके, राधे मर जाएगा

-0-

3- विवशता/ पूनम सैनी

 

 

होती नहीं कुछ चीज़ें

बस में हमारे।

छूटती सी चली जाती है जैसे

हाथ से बालू,

नहीं बस में रोक लेना

वक्त को भी वैसे।

गहराते अंधेरे के साथ

घिरते से अनगिनत ख्याल,

पर ज़हन से निकाल पाना

नहीं बस में हमारे।

कुछ पनपते से जज़्बात,

कुछ रह- रह लौट आती यादें,

कभी एक चेहरे को याद कर

अनायास ही मुस्कुरा देना।

बेसबब सा कभी

भर आना आँखों का।

हृदय की गहराई में

उमड़ते तूफान के बीच

कौंधती बिजलियों को

काबू कर पाना।

उलझे मन से

खुद को सुलझाना।

मुश्किल है बहुत... क्योंकि

होती नहीं कुछ चीज़ें

बस में हमारे।

-0-

4-कपिल कुमार

1

डायनासोर प्रजाति की छिपकलियो!

तुमने लिखा है क्या

अपने पूर्वजों का इतिहास

या बस किया

उजाले के इर्द-गिर्द घूमने वाले

कीट-पतंगों का भक्षण,

 

वैज्ञानिक-शोध

दे रहे तर्क-वितर्क

कोई कह रहा है

धरती से उल्का पिंड के टकराने से विलुप्त हुए

किसी के सिद्धांत के सिर- पैर तक नहीं

 

दे रहे है सभी

भाँति-भाँति के सिद्धांत

ल-जुलूल सिद्धांत

जितने मुँह उतनी बातें

सभी लगे हुए है

अपने-अपने सिद्धांत को

सत्य और सटीक साबित करने में

 

किसी दिन अपने

संग्रहालयों, पुस्तकालयों में जाकर

उठा लाओ

वो सारी पांडुलिपियाँ

जो लिखी है प्रबुद्ध इतिहासकारों ने

और जलाकर राख कर दो

वो सारे फ़र्जी दस्तावेज

जो लिखे गए है

घिसे-पिटे इतिहासकारों द्वारा,

 

पटक दो इन प्रामाणिक पांडुलिपियों को

उस मेज पर

जिस पर रखे है झूठे तथ्य

और बन्द कर दो

सभी का मुँह।

2

मैं चाहता हूँ

अपने घास फूस के कच्चे घर को तोड़कर

आधुनिक शैली का भवन बनाना

मिट्टी की लिपी-पुती दीवारों पर पलस्तर चढ़ाना

फ़िर अचानक विचार आता है

 

मेरे इस घर के अंदर 

टाँड पर पड़ी जच्चा छिपकली का

जिसके सभी सगे- संबंधी जुटे है

कुआँ-पूजन की तैयारी में

आ रही है उसकी सहेलियाँ

उसको बधाई देने

 

मेरा घर तो सदियों पुराना है

लगभग दो सप्ताह पहले

इसके छप्पर में 

एक चिड़िया ने बनाया था

अपना नया घर

ब्याज पर पैसे लेकर 

या होम लोन लेकर

मैं नही चाहता

उसको उजाड़ना

 

दो बल्लियों के बीच खाली जगह में रोज मिलते है 

अजीब किस्म के दो कीट

जिनकी प्रजाति मैंने कभी जानने की कोशिश नहीं की

उनकी हरकतों से लगते है

प्रेमी-प्रेमिका

शायद उनको इससे सुरक्षित जगह कोई ना मिली हो

मैं नहीं चाहता

उनके वियोग का कारण बनना

 

रात को आले में जलती डिबिया के उजाले में

मैं देखता हूँ ऐसे ही असंख्य जीव

जो व्यस्त है भिन्न-भिन्न कार्यों में

छप्पर को अपनी दुनिया मानकर

मैं नही चाहता

उनको उद्विग्न करना

इसलिए मैं प्रतिदिन त्याग देता हूँ

घर तोड़ने का विचार।

-0-