द्वारिका प्रसंग
श्वेता राय
सुदामा-[ सुशीला को समझाते हुए सुदामा]
हे भामिनी! प्यारी सुनो मत, लोभ माया में फँसो।
दलदल हृदय को ये करे ,मत नासिका तक तुम धँसो।।
है धाम प्यारा घर हमारा, प्रेम से इसमें रहो।
मन में लिये तुम नेह -सरिता, अनवरत हिय तक बहो।।
माया जगत् की झूठ सारी, झूठ सब वैभव यहाँ।
हैं झूठ सब रिश्ते यहाँ पर, झूठ है उद्भव यहाँ।।
अब बात मेरी मान कर बस, नाम प्रभु का लो सदा।
तुम भूलकर प्रिय कष्ट सारे, प्रेम ही बाँटो सदा।।
माया अकेली कब रही है, साथ लाती द्वेष ये।
क्षण -क्षण हृदय में व्यर्थ पल पल, है बदलती भेष ये।।
धन -धान्य से मुक्ति सहज ही, कब कहाँ मिलती यहाँ।
बस भक्ति ही प्रभु की धरा से, साथ जायेगी वहाँ।।
संसार सारा भ्रम सुनो प्रिय, बात ये तुम मान लो।
प्रभु के चरण बस शीश नत हो, बात ये तुम ठान लो।।
छल- द्वेष से तुम दूर हो ,सन्मार्ग पर चलती रहो।
हैं दीन के वो ही सहारे ,नाम प्रभु भजती रहो।।
सुशीला का उत्तर-
हे नाथ! अब मेरी सुनो तुम बात जो मैं बोलती।
प्रतिदिन क्षुधा को मैं कुटी में नीर से हूँ तोलती।।
है धाम प्यारा घर हमारा, मानती इस बात को।
पर क्या करूँ जब सह न पाऊँ, भूख के आघात को।।
सब कष्ट से हैं बिलबिलाते, नींद भी आती नहीं।
चिल्ला रहे छौना सभी हिय चैन मैं पाती नहीं।।
कुछ हैं कहाँ जो दे उन्हें मैं चुप कराऊँ प्यार से।
है सूखती छाती प्रिये भी, गरीबी की मार से।।
मत देर अब स्वामी करो तुम द्वारिका पथ थाम लो।
कहते रहे हो मित्र जिनको अब उन्हीं का नाम लो।।
है दीन के वो तो सहारे, भूप भी अपने हुए।
यदि देख लें वो भर नयन तो दर्द सब सपने हुए।।
मुख से नहीं कुछ बोलना तुम हाथ भी मत खोलना।
सब देख उनका ठाट वैभव मत हृदय से डोलना।।
यदि पा गये हम प्रेम उनका, बात तब ये जान लो।
जीवन करुँ प्रभु के चरण में, दान अपना मान लो।।
विनती तुमसे नाथ है, करो इसे स्वीकार।
प्रभु के दर्शन से प्रिये, लाओ जीवन धार।।
श्वेता राय
विज्ञान अध्यापिका
देवरिया
उत्तरप्रदेश
274001