पथ के साथी

Sunday, July 26, 2015

नहीं छू पाती तुम्हें



 1-नहीं छू पाती तुम्हें
 अनिता मण्डा

तुम दूर कहीं चमकते हो
आसमान के सीने पर
आना चाहती हूँ तुम तक उड़कर
हाथ उठाती हूँ हवा में पूरे वेग से
पर पैर रहते हैं धरती से चिपके
नहीं छू पाती तुम्हें।

मन की नदी में
ढूँढती हूँ तुम्हारा अक़्स
उतर जाती हूँ गहराई में
तुम्हें पाने
पर तभी नदी के
पानी में छुपे हुए
अनगिनत ज़हरीले नाग आकर
दंश मारने लगते हैं।

मेरा पोर-पोर दर्द से भर जाता है
मैं तड़प उठती हूँ।
नदी सिहर उठती है
मेरी सिसकियों से

तभी एक फूल की
महक से भरी हवा
छू लेती है
नदी के पानी को
सारे नाग मिल गूथ जाते हैं
जाल में बाँध मुझे
ले आते हैं किनारे

धीरे-धीरे मेरी सिसकियाँ
बन जाती हैं हिचकियाँ
फिर यही लगता है
तुम ऊपर आसमान में
मुझे याद कर रहे हो
बुलाना चाहते हो अपने पास

मैं भी आना चाहती हूँ तुम्हारे पास
उठाना चाहती हूँ तुम्हें गोद में
छूना चाहती हूँ तुम्हें

कैसा होगा तुम्हारा कोमल
मधुर प्रथम स्पर्श
प्रतीक्षा है मुझे हर पल
उस पल की।
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2-सुनीता अग्रवाल


1-प्रेमसाधना

हद से गुजर जाते है
जब ख्यालों  में तुम्हारे
गूँगे  हो जाते है अल्फ़ा
छिप जाते है गहराई में
कही गहरे सागर में
की डाले न विघ्न
कोई आवाज़
इस प्रेम साधना में ।
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2-यादें

यादें नही
गेसुओं में उलझी
जल की नाजुक बूँदें
कि
झटक दूँ
और बिखर जाएँ ।
-0-