महाराणा प्रताप को
समर्पित ‘नेशन प्राइड अवार्ड’
डॉ.सुषमा
अतुल गुप्ता को
फिल्म जगत के विख्यात
अभिनेता रजा मुराद जी ने रविवार, 14 मई 2017 को प्रात: 11 बजे गोल्डन मूमेंट्स, सेक्टर 12, करनाल
में महाराणा प्रताप जयंती समारोह में शामिल होकर, इस अवसर पर वह देश की 70 महान विभूतियों को नेशन प्राइड अवार्ड से
सम्मानित किया।
सुकमा नक्सली हमले में
शहीद हुए सोनीपत के सपूत के परिजन, ओलंपिक विजेता योगेश्वर दत्त,
साहित्य एवं समाज सेवी प्रीति समकित सुराना आदि
सहित अनेक कलाकार , एवं समाज सेवी शामिल
हुए। कलर्स चैनल में शामिल बच्चों की टीम के शानदार प्रदर्शन और गायक राजू पंजाबी के देश भक्ति गीत की
प्रस्तुति सहित अतिथियों के उद्बोधन में विशेष तौर पर रजा मुराद का वक्तव्य
प्रेरणास्पद रहा। तत्पश्चात डॉ सुषमा अतुल गुप्ता' सहित अन्य सभी प्रतिभागियों को रजा मुराद जी ने
नेशन प्राइड अवार्ड से सम्मानित किया।
-0-
-0-
1:धरित्री बन जाऊँगी ...
-0-
रेनू सिंह की कविताएँ
1:धरित्री बन जाऊँगी ...
सूर्य जो उदित हुआ
दुआओं से
उसकी रश्मियों को
सहलाया था।
गोद में रखकर
दुलारा था मैंने
बार -बार चूमा है
मेरे भीतर व्याप्त है
उसकी सिहरन
उसका प्रकाश ,
उन्मुक्त हो रही हूँ
मैं इस नेह से,
सहमी भी हूँ
कही अस्त न हो जाए
बार -बार जकड़ लेना चाहती हूँ
बाहें फैला फैलाकर
आह्वान करती हूँ
आओ रश्मियों
नित -नूतन रूप में
समा जाओ मुझ में
मैं धरित्री बन जाऊँगी
और धारिणी भी ।
उसकी रश्मियों को
सहलाया था।
गोद में रखकर
दुलारा था मैंने
बार -बार चूमा है
मेरे भीतर व्याप्त है
उसकी सिहरन
उसका प्रकाश ,
उन्मुक्त हो रही हूँ
मैं इस नेह से,
सहमी भी हूँ
कही अस्त न हो जाए
बार -बार जकड़ लेना चाहती हूँ
बाहें फैला फैलाकर
आह्वान करती हूँ
आओ रश्मियों
नित -नूतन रूप में
समा जाओ मुझ में
मैं धरित्री बन जाऊँगी
और धारिणी भी ।
सत्या शर्मा 'कीर्ति का पैन्सिल स्कैच |
-0-
2:रेत की नदी
उछलती,चहकती
उफनती,मचलती
प्रवाह के
उन्नत -अवनत वेग,
बाँध बन गई
अचानक
बंदिशें,हिदायतें,
ठहरता प्रवाह
कसैला कर गया
तन-मन,
गोल -गोल डरी हुई
आँखें
सहमता मन
सूखता अन्तर्मन
शून्य होती आँखें
बनने लगी रेत.,
वो
भीतर ही भीतर,
और
एकरोज
पूरी की पूरी
रेत हो गई,
भीतर बहुत भीतर
टटोला,कुरेदा
जिंदा थे , ,
तरलता के चिह्न
कि
बहती थी कभी
प्रवाहमय
संगीतमय,लयमय,
ये
रेत की नदी …
-0-
रेनू सिंह.सेक्टर -4 बी, वसुन्धरा ,गाजियाबाद
2:रेत की नदी
उछलती,चहकती
उफनती,मचलती
प्रवाह के
उन्नत -अवनत वेग,
बाँध बन गई
अचानक
बंदिशें,हिदायतें,
ठहरता प्रवाह
कसैला कर गया
तन-मन,
गोल -गोल डरी हुई
आँखें
सहमता मन
सूखता अन्तर्मन
शून्य होती आँखें
बनने लगी रेत.,
वो
भीतर ही भीतर,
और
एकरोज
पूरी की पूरी
रेत हो गई,
भीतर बहुत भीतर
टटोला,कुरेदा
जिंदा थे , ,
तरलता के चिह्न
कि
बहती थी कभी
प्रवाहमय
संगीतमय,लयमय,
ये
रेत की नदी …
-0-
रेनू सिंह.सेक्टर -4 बी, वसुन्धरा ,गाजियाबाद